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________________ धार्मिक पुस्तको मूळ, भाषांतर अथवा नवी कृतिना छपाववामां आवे ते सर्वे कोइ पण विद्वान मुनिराजने बताबीन तेमना प्रमाणपत्र सहित छपाववानी आवश्यकता उपर कॉन्फरन्से भार मूक्यो. आ अधिवेशने सामाजिक बाबतोमा समाजने स्पष्ट दोरवणी आपवानी फरज समजी बाळलग्न, वृद्धविवाह, कन्याविक्रय, बहु पत्नित्व, मृत्यु पाछळना जमणवार, अयोग्य फरजियात खर्ची वगेरे हानिकारक रीत रिवाजोने दूर करवा अनुरोध को. श्रावको सीझाय नहि अने दीनहीन हालतमा धर्मातर थतां अटके ते माटे निराश्रीत जैनोने धंधे लगाडवानी, अनाथ बाळकोने तथा अनाथ विधवाओने आश्रय आपवानी, बाळाश्रम स्थापवानी अने जन्मपर्यंतना असाध्य रोगोथी पीडाता निराश्रित स्वधर्मी बंधुओने माटे आश्रयस्थान स्थापवानी आवश्यकता स्वीकारी. हिंदुस्तानना जुदाजुदा भागोनी अंदरथी मळी आवती जैन प्रतिमाओ मेळववामां घणी मुसीबत पडती होवाथी ट्रेझर ट्रोव अॅक्टमां जरुरी सुधारा करवा हिंदी सरकारने मेमोरीअल करवानी शेठ आणंदजी कल्याणजीनी पेढीने सूचना करतो ठराव पण करवामां आव्यो. विविध क्षेत्रोने स्पर्शता अने समाजना प्राणप्रश्नोने लगता सर्वग्राही ठरावो करी राजनगर अधिवेशन कॉन्फरन्सना इतिहासमा सीमाचिह्नरुप बनी गयु छे. आ अधिवेशनमां साधु-साध्वीओए पण सारा प्रमाणमां हाजरी आपी हती. मुनि( पाछळथी आचार्य )श्री. बुद्धिसागरजीए " महावीर शासन विजयरंगमां करो न किंचित् खामी" अने “जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सथी, शीघ्र उन्नति हि मानी" जेवां काव्यो रची आपी कार्यकरोमां उत्साहनां पूर वहाव्यां हतां. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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