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रीते जैन.धर्मना पुस्तको दरेक भाषामा लखाय अने तेनो बहोळो प्रचार
थाय तेने आवश्यक माने छे. आ दिशामां सस्ता साहित्यनो प्रचार - करवा योग्य प्रवृत्ति करवा कार्यवाही समितिने सूचववामां आवे छे.".
जैन धर्मना सिद्धांतोनो प्रचार करवा माटे आधुनिक शैलीए साहित्य-सस्तु साहित्य जुदी जुदी भाषाओमा प्रकट करवानी घणी ज जरुर छे. जेथी जैनेतर प्रजा अने परदेशीओ सुद्धां जैन तत्त्वज्ञान सरळताथी समजी शंके. पन्यास श्री विकासविजयजी, शतावधानी साहित्यप्रिय मुनीश्री यशोविजयजी तथा शतावधानी मुनीश्री जयानंदविजयजीए पण 'कॉन्फरन्सना मंच उपरथी आ ठरावने अनुमोदन आपी जैन साहित्यनी जैन तेम ज जैनेतर समाजमा प्रचारनी आवश्यकता उपर भार मूकी जैन समाजने आ बाबतनी पोतानी फरज प्रत्ये जागृत थवानी हाकल करी हती, परिणाम श्रीयुत भाईचंदभाई नगीनदास झवेरीए श्री विजयदेवसुरसंघ तरफथी जैन धर्म अंगेनुं सुंदर पुस्तक तैयार करवा अंगे गोडीजी ज्ञानसमिति तरफी रुपिया दश हजार खर्चवानी तेम ज पोताना स्वर्गस्थ पिताश्री भाईचंद मंछुभाईना ट्रस्टमाथी तेओश्रीना स्मरणार्थे जैन तीर्थोनी गाइड तैयार करवा रुपिया पांच हजार आपवानी जाहेरात करी हती. . आम आ ठराव कॉन्फरन्सनी रचनात्मक प्रवृत्तिओनी दिशामां एक कदम आगे उठावतो हतो. २०. सखावतो __ जैनसमाज सखावतो माटे मशहूर छे. धर्मने माटे तेणे लाखो रुपीया खा छे अने हजी खर्चे छे. परंतु लांबा काळ सुधी जैन
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