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________________ १४३ समाजे सामाजिक प्रवृत्तिओ तरफ दुर्लक्ष सेव्यु हतुं अने तेथी समाजोत्थाननी प्रवृत्तिओ माटे दान करवा तरफ तेनुं लक्ष ओछु हतुं. कॉन्फरन्से पोताना जन्मकाळथी जैनसमाजना निराश्रित अने दुःखी भाईओने राहत माटे, तेमनामां केळवणीनो प्रचार थाय ते माटे अने तेओ व्यापारधंधे लागे ते माटे खूब जोरशोरथी प्रचार को अने त्यारथी सौने लाग्यु के दाननी आ दिशा तद्दन ऊवेखवा जेवी नथी. कॉन्फरन्से लगभग पोताना दरेक अधिवेशनमा जैन समाजनुं ध्यान आ प्रश्न परत्वे दोयु हतुं. परिणामे आज सुधीमां कॉन्फरन्सना मंच परथी सामाजिक कार्यो माटे लाखोनी सखावतो जाहेर थई छे, एटलुज नहि पण साराये जैन समाजे कॉन्फरन्सनो संदेश झीली आ प्रवृत्तिओनुं महत्त्व समजी ते माटे लाखो रूपिया खरच्या छे. धर्म अने समाज एटला बधा परस्पर अवलंबीने रहेला छे के बन्ने एकबीजाना अविभाज्य अंग जेवा छे. समाज सिझातो होय तो धर्म टकी शके नहि अने धर्म सिझातो होय तो समाज टकी शके नहि. धर्म अने समाजरुपी बे आंखमांधी कोई पण आंख ओछी कीमती नथी. बन्ने एकबीजानां पूरक छे. सुखी समाज धर्म करी शके छे अने साचो धर्म सुखी करी शके छे. - कॉन्फरन्सना सतत आंदोलनोन परिणामे जैनसमाज, धार्मिक प्रवृत्तिओ तरफ जराये उपेक्षा कर्या सिवाय, सामाजिक प्रवृत्तिओ पाछळ धनव्यय करवानुं शीख्यो ए तेनी जेवी सिद्धि न कहेवाय. जैनसमाजमां केळवणीने लगती तेम ज बीजी अनेक सामाजिक संस्थाओ आजे काम करी रही छे, तेनो यश आपणी आ महासभाने घटे छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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