SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० त्यांथी जे संस्कृत, हिन्दी अने अंग्रेजीमां पुस्तको अने पत्रिकाओ प्रसिद्ध थयां छे ते उच्च कक्षानां विद्यावर्तुलोमां आदरपूर्वक वंचाई रह्यां छे. आजे उच्च उच्चतर अध्ययननी मागणी बघती जाय छे तेवे प्रसंगे कॉन्फरन्से आजथी बीस वर्ष उपर लीघेलुं जैन चर स्थापवानुं पगलुं केटलुं दीर्घदृष्टिभरेलुं हतुं तेनो ख्याल आवे छे. जैन साहित्यने विश्वसाहित्यमां योग्य स्थान आपवा माटे, तेना योग्य मूल्यांकन माटे अन जैनदर्शन अने तत्त्वज्ञाननुं अध्ययन अन्य दर्शनीयो पण आवश्यक गणे तेवी परिस्थिति सजवा माटे हजी समाजे घणुं करवानुं बाकी रहे छे. खेदनी बात एटली छे के जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाजना विद्यार्थीओआ चॅरनो पूरतो लाभ लेता नथी. १०. विश्वविद्यालयोमां जैनसाहित्य, अर्धमागधी अने प्राकृतनो अभ्यास जैनागमो अने अन्य महान धर्मग्रंथो अर्धमागधी भाषामां लखायेला छे. तेथी जैनदर्शन अने तत्त्वज्ञाननी साची समज माटे अर्धमागधी अने प्राकृत भाषानो अभ्यास अत्यंत आवश्यक छे. वळी आजे शिक्षणनीबाबतमां दृष्टि व्यापक बनती जाय छे अने साम्प्रदायिक दृष्टिथी पर रही सर्व दर्शनोना तुलनात्मक अभ्यास तरफ वलण फेरवाइ रह्युं छे त्यारे जैनतत्त्वज्ञान अने धर्मनां साचां अने मूळभूत रहस्य जाणवा माटे अने बहार लाववा माटे भाषांतरो करतां मूळ ग्रंथो ज वधारे आधारभूत छे. आ कारणे अर्धमागधी भाषानो अभ्यास जेटलो वधे तेटले अंशे धर्मनी साची तात्त्विक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy