________________
आपणा प्रखर विद्वान पंडित सुखलालजी सने १९३३ना जुलाई लगभगमां काशी गया. पंडितजीए पोते कह्युं छे तेम पाते काशी जवा तैयार थया तेनी पाछळ बळ कॉन्फरन्सनुं हतुं.
कॉन्फरन्सनी प्रवृत्तिना आ एक अने अति महत्त्वत्ना अंगथी जैन समाज अने कॉन्फरन्सनी आवती पेढीना कार्यकर्ताओं परिचित रहे ए अति आवश्यक छे एम जणावी आ चर स्थापनानां परिणामो विषे तेओश्रीए श्री मोहनलाल दलीचंद देसाईना तैलचित्रनी अनावरणविधि प्रसंगेना अध्यक्षपदेथी ता. १२-७-५६ना रोज आपला व्याख्यानमां जणाव्यं हृतुं के,
छल्ला २३ वर्षमा काशीमां जे अध्ययन-अध्यापन, लेखन, संशोधन अने प्रकाशननी प्रवृत्ति थई के ते जैन चॅरने आभारी छे. एने लोधे भणनार तो केटला आव्या अने गया पण तेमांथी केटलाकनी योग्यता अने पदवी गणनापात्र छे. केटलाक जैनदर्शनना आचार्य धया तो केटलाक साथ साथ एम. ए. अने पी. एच. डी. पण एमांथी पांचेक तो प्रोफेसरना ऊच्च पद ऊपर प्रतिष्ठित छे. काशी जैन चॅरनी भावनाए केटलाक साम्प्रदायिक मानस धरावनार पंण जैन तत्त्वज्ञान अने साहित्यनो उत्कर्ष इच्छनार पंजाबी भाईओने प्रेर्या अने १९३७थी श्री प्रार्श्वनाथ विद्याश्रमनी स्थापना थई. आगळ जतां जैन कल्चरल रिसर्च सोसायटी स्थपाइ आम जैन चर अध्यापननुं काम पूरं पाडे, पार्श्वनाथ विद्याश्रम विद्यार्थीओने रहेवा, खावापीवा आदिनी सगवड पूरी पाडे, विशिष्ट पुस्तकालयनी सगवड आपे अने कल्चरल रिसर्च सोसायटी सुनिष्णात विद्वानोना चिन्तनलेखनने मूर्त रूप आपे. आ त्रणेय अंगो एवी रीते संकलित थया छे के ते एकबीजानां पूरक अने पोषक बैनी मात्र जैन परंपरानी ज नहि, भारतीय - अभारतीय विद्वानोनी नवयुगनी अपेक्षाने अमुक अंशे संतोषी रह्यां छे.
53
(:
११९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org