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________________ १२१ समज वधवानी छे. जैनसाहित्यना मूळ ग्रंथोने विश्वसाहित्यमां योग्य स्थान अपाववा पण तेनो अभ्यास जरुरी छे. तेथी कॉन्फरन्से पोतानी घणी बेठकोमा आ अभ्यास उपर खूब भार मूकेलो छे. कॉन्फरन्सना मोवडीआने एक वात ए पण समजाइ हती के नवी पेढीना युवानो जेओ पाश्चिमात्य उच्च केळवणी ले छ तेमना युनिवर्सिटीना अभ्यासक्रमोमां जो जैनसाहित्यना ग्रंथानो अभ्यास चालु थाय तो जैनसाहित्यनी विशिष्टताओ जगत समक्ष रजू करवानुं कार्य वधु सरळ बने. कॉन्फरन्सना प्रयासोथी मुंबई युनिवर्सिटीना बी.ए.ना तथा एम.ए.ना अभ्यासक्रमोमां जैनसाहित्य अन्य साहित्यानी साथे दाखल करवामां आव्युं हतुं. मागधी भाषाना उद्धार माटे दशमा मुंबई आधिवेशने नीचेनो ठराव पसार कयों हतो : " आपणां शास्त्रोनी भाषा मागधी (प्राकृत ) होवाथी ते यथार्थ समजी शकाय ते माटे तेने सजीवन राखवानी अती आवश्यकता छे, माटे(१) मागधी भाषानो सरळ अभ्यास थई शके तेने माटे मागधी (प्राकृत) भाषानो कोष तयार कराववा तमाम जैनोनुं लक्ष आ कॉन्फरन्स खेंचे छे; तथा (२) मागधी भाषानुं संपूर्ण व्याकरण सरळ पद्धतिए तैयार करवानी अतिजरूर आ कॉन्फरन्स स्वीकारे छे, अने आ बाबतमां जे प्रयास अत्यार सुधीमां थयो छे तेने माटे धन्यवाद आपी ते दिशामां वधारे प्रयास करवा खास भलामणो करे छे; (३) जेनोहस्तक चालती संस्कृत पाठशाळाओमा तेम ज ऊंची जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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