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गरण समाधि (पयन्ना)
पिछले पयन्ना जी (संस्तारक पयन्ना) का विषय था 'समाधि मरण' और आश्चर्य की बात है कि इस पयन्नाजी का विषय भी है 'समाधि मरण' ।
'हजार हजार' धन्यवाद हमारे ज्ञानी जनों को । जिन्होंने हमारे जीवन की तो चिन्ता की ही है पर मरण की भी परवाह की है |
श्री गच्छाचार पयन्ना में हमें जीने की कला सिखाई और अंतिम दो पयन्ना में मरने का अंदाज समझाया ।
अपेक्षा से कहा जा सकता है कि जिंदगी को समझना तथा जीना आसान है लेकिन मुश्किल है मृत्यु को समझना-परखना-अपनाना । क्योंकि मृत्यु की एक सबसे बड़ी खासियत है 'आकस्मिक आक्रमण' (इमरजेंसी एटेक) । मौत कहीं भी कभी भी और किसी को भी आकर के उठा ले जाती है । इसीलिए किसी चिंतक ने मृत्यु का परिचय कुछ यूं करवाया है |
'न गाती है न गुनगुनाती है । मौत जब भी आती है चुपके से चली आती है'
बड़ी खामोश है मृत्यु | इसलिए 'विद्वद्वर्य' १४४४ ग्रंथ के प्रणेता आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी म. का फरमान है 'नित्यं अवलोक-नीयो मृत्युः'
मरण का स्मरण नित्य करो । कभी मत भूलो कि मृत्यु नहीं आएगी।
gaananmar माह-माह-माह-मागम
806966666666
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