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परेशान किया हो, तो उसे भी क्षमा प्रदान करे |
'क्षमापना' करने से महत्त्वपूर्ण लाभ यह होता है कि जीवमात्र की शुभकामनाएं दुआएं हमें मिलती है, फलतः हम जिस साधना को सिद्ध करने जा रहे हैं उस साधना में हमें ये कामनाएँ उत्साह/जोश प्रदान करती है।
(४) प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान से तात्पर्य है यथाशक्ति चारों आहार का त्याग । शायद 'संथारा' स्वीकार करने की प्रक्रिया का सबसे कठिन | दुर्जय कार्य यही हैं । बिना आहार किए 'धर्मरुचि' और धर्माराधना में स्थिर रहना प्रबल कसौटी है । लेकिन जिसे 'आत्मानंद दशा' का ही आस्वाद लेना है वह तो इम्तिहान कसौटी में कामयाब होता ही है ।
(५) धर्म श्रवण - सबसे अन्तिम चरण में है धर्मश्रवण | सदगुरु के श्रीमुख से सुने गए धर्मश्लोक/धर्मवाणी मंत्रतुल्य है । ये मंत्र साधक के भीतर जाकर श्रद्धा को दृढ बनाने का ठोस कार्य करते हैं |
इस प्रकार विधिपूर्वक, सदगुरु सान्निध्य में किया गया संथारा भगीरथ कर्म निर्जरा में सहायक होता है |
जो सम्यक् | अच्छी तरह ते तारे वह संथारा है । यह संथारा साधक को तीन भव में शाश्वत-सुखी बनाने की गारंटी देता है ।
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વૈરાગ્યનું વટવૃક્ષ-આગમ
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