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'मरण समाधि' में समाधि मरण प्राप्त करने की प्रक्रिया अति सूक्ष्मता के साथ निरुपित किया है । मृत्यु संबंधी लगभग सभी विषयों का इस ग्रंथ में समावेश किया है । ६६७ गाथा के इस विशाल आगम में जीवन की पुस्तक का अंतिम अध्याय यानि मृत्यु को कैसे सजाया, संवारा और निखारा जाए. इस बात को खूब सफाई के साथ निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया है - • बाल मरण क्यों हेय तथा पंडित मरण क्यों उपादेय ? • आराधना के भिन्न भिन्न प्रकार । • ५ संक्लिष्ट भावना का त्याग । . शल्योद्धार • आराधना-आराधक-अनाराधक परिकर्म से आलोचना आदि का स्वरुप एवं
आलोचना की १४ प्रकार की विधियां • संलेखना की विधि । सान्निध्यदाता सूरिराज के सदगुण . कषाय प्रमाद आदि अभ्यंतर शत्रुओं का आत्मसमर्पण • ज्ञान-दर्शन-चारित्र की महिमा तथा उद्यम के लिए प्रेरणा • अनशन का लक्षण • पांडवों आदि के प्रेरणास्पद तथा रसप्रद उदाहरण | • अभ्युद्यत मरण का स्वरुप • अनित्य आदि भावना • मोक्ष का सुन्दर स्वरुप • ध्यान
अन्त में बताया गया है कि यह 'मरण समाधि पयन्नाजी 'मृत्यु विशुद्धि, मरण समाधि, संलेखना श्रुत, भक्त परिज्ञा, आतुर प्रत्याख्यान, मरण विभक्ति, मरण समाधि और आराधना प्रकीर्णक इन आठ श्रुत में से रचित
जिनाज्ञा विरुद्ध अथवा आगमकार पूज्यों के आशय विरुद्ध कुछ भी कहा गया हो, तो मिच्छामि दुक्कडं ।
marma
धरोनोमाधार-मागम
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