________________
तथा सामान्य किस्म के देवता जिनका आयुष्य १०,००० वर्ष होता है उन्हें एकान्तर (एकदिन छोड़कर) ही भोजन करने की इच्छा है । सर्वोत्तम कक्षा के अनुत्तरवासी देव लगभग १ वर्ष साढ़े चार महीने में एक बार सांस लेते हैं । सामान्य किस्म के देवता ७ स्तोक में एक बार सांस लेते हैं | देवताओं का शरीर अत्यंत सुन्दर, मजबूत होता है । श्वास खुश्बू से भरपूर होती है । आँखों की पलकें कभी झपकती नहीं है । शरीर में बाल हड्डी मांस रुधिर (खून) आदि नहीं होते एवं देवता हमेशा जमीन से चार अंगुली उपर
ही चलते हैं। • देवता सभी कलाओं में कुशल होते हैं तथा एक समय में अनेक रुप बना
सकते हैं। देवताओं से देवेन्द्रों की शक्ति | समृद्धि | सुखसंपन्नता कई गुना ज्यादा, विशिष्ट कोटि की होती है ।
'इन्द्र द्वारा प्रभु की स्तुति क्यों ? अपार ऋद्धि और वैभव के स्वामी इन्द्र महाराजा भी तारक अरिहंत परमात्मा को इसलिए नमस्कार करते हैं कि क्योंकि प्रभु के पास इन्द्रों से भी अद्भुत ऐश्वर्य है । इसके बावजूद प्रभु संपूर्ण निरासक्त हैं । जबकि हम लोगों के पास सामान्य, अल्प जीवी समृद्धि है... और, आसक्ति का तो कहना ही क्या ?
'सिद्धात्मा तथा सिद्धशिला का वर्णन' अनुत्तरवासी देवता के विमानों से १२ योजन उपर सिद्धशिला है । सिद्धशिला का विस्तार ४५ लाख योजन है । इसका वर्ण दूध तथा बरफ के समान अत्यंत उज्जवल है । वहां पर बिराजित सिद्धात्मा की उत्कृष्ट अवगाहना (३३३ धनुष्य तथा जघन्य अवगाहना प्राय: १ हाथ ८ अंगुल हैं) सिद्ध सुख शब्दों में अवर्णनीय, कल्पनातीत सिद्ध भगवंत का सुख है । प्रस्तुत आगम में कहा गया है कि तमाम देवों के तीनों काल (वर्तमान, भूत, भविष्य) के वैभव / ऐश्वर्य को इकट्ठा कर दिया जाए तो भी 'सिद्ध महाराज' र के सुख के अनंतवें भाग जितना सुख नहीं हो सकता ।
છે ઇતિહાસની ઇમારત-આગમ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org