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• वैमानिक देवों, तथा इन्द्रों का वर्णन • सिद्धशिला का वर्णन • सिद्ध आत्मा के सुख का वर्णन • अरिहंत की समृद्धि का वर्णन
भवनपति अधिकार • भवनपति देवों का निवास स्थान हमारी पृथ्वी से लगभग १ लाख ७८
हजार योजन नीचे की ओर स्थित है। • भवनों में रहने की वजह से ये देव भवनपति कहलाते हैं । , . • इनका स्वभाव बच्चों की तरह तूफानी , चंचल और कुतूहलपूर्ण होता है । • इनके भवनों की कुल संख्या ७ लाख ७२ हजार है।
इन देवों के इन्द्रों की संख्या २० है । • भवनपति देवों के मस्तक पर मुकुट होता है एवं मुकुट के उपर सिंह, हाथी,
घोड़ा आदि पशु चिन्ह अवश्य अंकित होते हैं । भवनपति देवों के भवन 'बड़े बड़े नगरों में होते हैं | नगर वज्ररत्न के बने होते हैं । नगर-द्वार सुवर्ण के बने होते हैं | नगर के द्वारों पर विशालकाय सुवर्ण घंट होते हैं | जब कोई आकस्मिक / विशेष कार्य आ पड़ता है । तो घंटनाद द्वारा सर्वत्र खबर पहँचाई जाती है |
भवनपति देवताओं का जघन्य आयुष्य = १०,००० वर्ष है | एवं उत्कृष्ट आयु मर्यादा = १ सागरोपम से अधिक हैं | शरीर प्रमाण = ७ हाथ है।
'व्यंतर अधिकार' इनका निवास स्थान हमारी पृथ्वी से नीचे की ओर १०० योजन के
अन्तराल के बाद आरंभ होता है । • व्यंतर देवों का स्वभाव नवयुवकों की तरह उद्धृत स्वच्छंद होता है | • इन देवों को रहने के लिए असंख्य नगर हैं | • इनके घरो में मणि-सोन रत्न आदि बहुमूल्य धातु की शय्याएं होती है |
. इन देवताओं के ३२ समृद्धिमान इन्द्र होते हैं ।
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