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ल देवेन्द्र स्तुति
__ (देविन्दत्थुई)
इस पयन्ना का नाम 'देविन्दत्थुई' है । जिसका अर्थ है 'देवेन्द्रो के द्वारा प्रभु की गई स्तुति' इस पयन्ना की शुरुआत में श्रावक-श्राविका का सुन्दर वार्तालाप हैं।
चातुर्मास का समय था । श्राविका के साथ श्रावक ने चैत्यवंदन किया । चैत्यवंदन स्तवना के दौरान श्रावक ने स्तवना की कि जिन अरिहंत परमात्मा की ३२ इन्द्रों ने पूजा की है ऐसे महावीर देव को मैं भावपूर्वक नमस्कार करता हँ । चैत्यवंदन पूर्ण हआ । श्राविका ने अपनी जिज्ञासा प्रगट करते हुए पूछा कि हे स्वामिनाथ ! ऐसा तो कई बार सुना है कि ६४ इन्द्रों ने तीर्थंकर प्रभु की भक्ति/अर्चना की लेकिन ३२ इन्द्रों ने पूजा की , ऐसा तो आज पहली बार सुना |
तब , श्रावकजी ने समाधान किया कि इन बत्तीस इन्द्रों में व्यंतर निकाय के इन्द्रों का समावेश नहीं किया है इसलिए ६४ इन्द्रों के बजाए ३२ इन्द्रों ने प्रभु की स्तुति की ऐसा कहा ।
___श्राविका को पुनः जिज्ञासा जागी.. श्रावकजी ने पुनः समाधान किया । फिर जिज्ञासा...फिर समाधानं ऐसा करते करते इस विशाल ग्रंथ की रचना हो गई ।
प्रस्तुत आगम में मुख्य इन विषयों को समझाया गया है• भवनपति देवों, इन्द्रों के स्वरूप आदि का वर्णन • व्यंतर देवों, इन्द्रों के स्वरुप आदि का वर्णन
ज्योतिष देवों, इन्द्रों के स्वरुप का वर्णन
- પૂજ્યતાની પરાકાષ્ઠા-આગમ
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