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(४) करण एवं उसके कार्यफल • प्रायः बारह घण्टे प्रमाण का एक करण होता है | • बव नामक करण में व्रत-स्थापना , सूत्र-अनुज्ञा आदि करना चाहिए । • शकुनि, विष्टि नामक करण में अनशन करना कल्याणकारी हैं ।
(५) वार एवं उनके कार्यफल • गुरुवार, शुक्रवार एवं सोमवार इन वारों में शिष्य को दीक्षा-दान, पदवीप्रदान, व्रत-ग्रहण आदि कार्य करवाए जा सकते हैं ।
(८) शगुन | शकुन • यदि गमन करते समय 'खिला हुआ फुल दिखाई दे तो स्वाध्याय ज्ञानार्जन
के लिए उत्तमोत्तम समय जानना चाहिए • यदि आकाश में अचानक बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई दे तो मोक्ष साधना,
आत्म रमणता के लिए प्रयत्न करना हितावह है | यदि तिर्यन्च पशु/प्राणियों की आवाज सुनाई दे, तो प्रस्थान करना सुखदायी है | । पूरे ग्रंथ एक बात स्पष्ट रुप से फलित होती है कि आचार्य भगवंत अपनी
इस ज्योतिष विद्या का उपयोग सर्वथा निरवद्य कार्यो के लिए ही करें । किसी भी सावध कार्य में कतई न करें ।
પૂજ્યતાને પ્રેમ-આગમ
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