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गणिविजा
गणि = मुनि समूह के नायक अर्थात् आचार्य भगवंत और विज्जा = विद्या. आचार्य भगवन्त की विद्या । यहां गणि विद्या से तात्पर्य है ज्योतिष विद्या । इस आगम में ज्योतिष के बारे में भरपूर जानकारियां दी गई है । यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि दुनिया के तमाम राष्ट्रों, धर्मो और संस्कृतियों ने ज्योतिष को अपनाया है | चाहे इजिप्त हो, जर्मनी हो , या फ्रांस हो या अन्य कोई भी देश हो । ज्योतिष से कोई भी अछूता नहीं है ।
हमारे महापुरुषों ने भी कार्य की सफलता में ज्योतिष की अहम् भूमिका को मान्य किया है । स्वयं विद्वान आचार्यदेव हरिभद्रसूरिजी म. योगशतक नामक ग्रंथ में लिखते हैं कि 'जब भी कोई गुणस्थानक | व्रत स्वीकार करना हो तब, शुभ द्रव्य , शुभ क्षेत्र शुभ काल एवम् शुभभाव अवश्य देखना चाहिए |
प्रस्तुत आगम भी में ज्योतिष के नौ अंगो पर विवेचन किया गया है .
(१) दिवस (२) तिथि (३) नक्षत्र (४) करण (५) ग्रह दिवस (६) मुहूर्त (७) शगुन/शकुन (८) लग्न (९) निमित्त ।
इनका उपयोग आचार्य भगवन्त 'लोच , दीक्षा, योग-प्रवेश, सूत्र की अनुज्ञा आदि में करते हैं।
आइए इनमें से कुछ गहराई से समझें
(१) सबसे पहले तिथि और उसका फल
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હું
વ્યહવારનું વિધાન-માગમ
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