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सुगच्छ कहलाता है'
प्रस्तुत ग्रन्थ में गोचरी वापरने के ६ कारण बताए गए हैं -
(१) यदि क्षुधा परेशान कर रही हो (२) वैयावच्च में रुकावट आ रही हो (३) ईर्यासमिति के पालन में बाधा आ रही हो (४) संयम साधना दुष्कर बन रही हो (५) प्राण त्याग की स्थिति आ पडी हो...(६) धर्मचिन्ता में रुकावट आ रही हो ।
यदि ६ कारण में से एक भी कारण उपलब्ध न हो, तो गोचरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है | ऐसा कहकर ग्रंथकार गोचरी और पानी संपूर्ण रुप से निर्दोष ही वापरने का आग्रह करते हैं । अनीति का धन जैसे गृहस्थों के घरों की शान्ति को लील जाता है वैसे ही दोषित गोचरी पानी 'गच्छ-शान्ति' को भंग कर देती है |
- इसके अलावा कुछ और भी सुगच्छ के लक्षण अत्यंत संक्षेप में इस प्रकार हैं - • सुगच्छवासी मुनि क्रय विक्रय करे नहीं, करावे नहीं तथा अनुमोदना भी न करें । • वनस्पति, कच्चे पानी, सचित्त वस्तु को छुए तक नहीं । • बहुमूल्य धातुएँ रखे तो नहीं, पर स्पर्श भी न करे |
अज्ञानी या वक्र बुद्धि वाले जीव कितनी भी मजाक-हंसी करे पर उनपर गुस्सा न करे । गृहस्थों जैसी भाषा का उपयोग सर्वथा वर्जित करे । कारणवशात् यदि साध्वीजी म. को किसीसे बातचीत भी करना पड़े तो महत्तरा साध्वी म. के पीछे रहकर बात करें ।
बातचीत अत्यंत मृदु-मंद स्वर में करें (विशेष कर साध्वीजी म.) • शरीर की शोभा सजावट बिल्कुल न करें । • असंयम पोषक रंगीन वस्त्रों का परिधान न करें । • शारीरिक दुर्बलता के कारण यदि आचार' में शिथिलता हो जाए तो क्षम्य
है लेकिन प्ररुपणा में शिथिलता कभी न लाएँ । प्ररुपणा हमेशा सुविशुद्ध ही करें ।
इन लक्षणों से विपरीत आचरण कुगच्छ तथा कुसाधु को इंगित करता है।
નિશ્ચયનું નિધાન-આગમ
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