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________________ पाने के...लिए जिस तरह भँवरे आतुर होते हैं उसी तरह साधु भी ग्लान आदि मुनियों की सेवा के लिए सदैव तत्पर होते हैं | सेवा भी बहुफलदायी है । संसार का एक (Rule) नियम है कि Give and Take दीजिए और लीजिए | उसी तरह जैन शासन का भी एक नियम है Limited give & Unlimited take (थोड़ा दीजिए और भरपूर पाइए) सेवा से सेवा तो मिलती है साथ ही और भी कई नए गुणों का विकास होता है । शास्त्र में कहा गया है - 'वैयावच्चे करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे हवइ' वैयावच्च करने वाले श्रमण मुनिराज महानिर्जरा को प्राप्त करते हैं | श्री उत्तराध्ययन में तो मुनिराज को यहां तक भरोसा विश्वास दिलाया गया है कि वैयावच्चेण तित्थयर नामगोत्तं जणयइ' वैयावच्च से तीर्थंकर नामकर्म की उपलब्धि होती है | इसलिए महाफलदायी वैयावच्च गुण को भी सुगच्छवासियों को निस्संदेह अपनाना चाहिए । ___★ 'जिस गच्छ में मुनिगण कुशील साधुओं का , गृहस्थों का संग भी नहीं करते, वह सुगच्छ कहलाता है ।' संसार के लुभावने मनभावन सुखों को छोड़ने का घोर पुरुषार्थ करके जब साधक संयम जीवन ग्रहण करता है तब उसका यह घोर पुरुषार्थ कहीं निरर्थक न हो जाए, इसकी सावधानी रखना बेहद जरुरी है । और ये तभी संभव है जबकि कुशील साधुओं तथा गृहस्थों की संगत छूटे क्योंकि इनका संग हमेशा मुनि को अन्तर्मुख बनने से रोकता है | जैसे दूध में यदि एक बूंद नींबू गिर जाए और सारे दूध का जायका किरकिरा हो जाता है वैसे ही ये कुसंग साधुता की लय को छिन्न भिन्न कर डालता है और छिन्न भिन्न साधुता कितने दुष्परिणाम लाती है, इसका बयान करना भी मुश्किल है। इसलिए भी गच्छाचार पयन्ना में हमें लाख रुपए की सलाह दी गई है, कि कुसंग का त्याग करो। ★ जिस गच्छ में निर्दोष गोचरी, पानी का उपयोग हो, वह 888883000 ૬ ઉપધાનનું ઉદ્યાન-આગમ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005576
Book TitleJinagam Sharanam Mama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgamoddharak Pratishthan
PublisherAgamoddharak Pratishthan
Publication Year
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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