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________________ निशीथ सूत्र एवं बृहत्कल्पभाष्य में कहा गया है कि, 'नवि किंचि अणुन्नांय, पडिसिद्धं वा जिगवरिन्देहिं । एसा तेसिं आणा, कज्जे सच्चेण होअत्वं ।।' अर्थ : 'प्रभु की इसके अतिरिक्त न कोई आज्ञा है न कोई निषेध । उनकी आशा रही है प्रत्येक कार्य में सत्यवादी बनिए । कार्य में सत्यवादी बनने का अर्थ यह हुआ कि जीवन में दम्भ को विदा करना । दम्भ का मतलब होता है हम जो | जैसे नहीं है वह / वैसे बनने या दिखाने की कुचेष्टा / जिसे सरल भाषा में दिखावा-आडंबर या ढोंग कह सकते हैं । हमारी कार्यशैली दम्भपूर्ण नहीं होनी चाहिए बल्कि सहज होना चाहिए । लेकिन दम्भ का त्याग भी गंभीर चुनौती है | स्वयं महोपाध्याय यशोविजयजी म. अध्यात्म-सार नामक ग्रंथ में फरमाते हैं: 'सुत्यजं रस लाम्पट्यं, सुत्यजं देहभूषणं । सुत्यजा काम भोगाद्याः दस्त्यजं दम्भसेवनं ।। अर्थः रसलालसाओं को घोड़ना आसान है, अलंकारों को छोड़ना भी सरल है अरे कामभोंगो को छोड़ना भी सरल है किन्तु मुश्किल है दम्भ का त्याग करना । ___ आलोचना | प्रायश्चित्त से दम्भ तो दूर होता है साथ-साथ जीवन में सरलता भी अवतरित होती है | ___ जब तक हम सरल नहीं हो जाते , मोक्षमार्ग के नजदीक नहीं आ पाते | ललित-विस्तरा ग्रंथ की पंक्ति है: ।। चेतसो अवक्रगमनं मोक्षमार्गः ।। अर्थ : चित्त का वक्र, धुमावदार, कपटपूर्ण न होना ही मोक्षमार्ग है । आलोचना से हमारी वक्रता पिघलती जाती है | और तभी तो सही अर्थो में श्रमण बना जाता है। श्री दशवैकालिक सूत्र में सुन्दर-पंक्ति है : निग्गंथा उज्जुदंसिणो । साधु भगवंत हमेशा सरल होते है | अतएव , गुरु शिष्य दोनों को अनिवार्यतः आलोचना लेनी चाहिए । ★ जिस गच्छ में ग्लानादि मुनिओं की सेवा की जाती है, उसे सुगच्छ कहते है। निशीथ सूत्र : में कहा गया है कि खिले हुए फूलों की खुश्बु ઉપશમની ઉપાસના-આગમ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005576
Book TitleJinagam Sharanam Mama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgamoddharak Pratishthan
PublisherAgamoddharak Pratishthan
Publication Year
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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