________________
|| जीहाए वि लिहन्तो, णत्थि सारणा जत्थ ।
दंडेण वि ताडन्तो, सा अस्थि सारणा जत्थ ।। ताड़णा (फटकार), का एक अतिमहत्वपूर्ण फायदा यह है कि वह न सिर्फ हमारे शरीर तक प्रभाव बताती है बल्कि उस की असर हमारे मन और अंतर्मन (अनकांसियस माइन्ड) तक पड़ती है फलतः हम नींद में भी अपराध नहीं कर पाते । हमारा सूक्ष्म मन भी अपराध को समर्थन देना बंद कर देता है । इसलिए मौका आने पर गुरुदेव अपने शिष्य को ताड़ना भी अवश्य कर सकते हैं । यदि गुरुदेव ऐसा न करें तो वे गंभीर अपराधी हैं ऐसा ग्रंथ का कथन है । ★ जिस गच्छ में शिष्य गुरु की उपासना करते हों वह सुगच्छ कहलाता है |
___ ध्यान दीजिए, संयम साधना एक सरल घटना है जबकि गरु उपासना विरल घटना । ऐसा इसलिए कि 'संयम साधना' मन के अनुसार की जा सकती है लेकिन गुरु उपासना में मन को दरकिनार / एक तरफ कर देना होता है । गुरु उपासना में सिर्फ आज्ञा ही सर्वस्व होती है जबकि संयम-साधना में मन का वर्चस्व होता है । इसीलिए मुश्किल है गुरु-उपासना । पर हां... एक बात यह भी है कि मुश्किल कामों को करने से महान् लाभ भी उपलब्ध होते हैं |
(१) गुरु उपासना से,ज्ञान प्राप्ति - पञ्चाशकजी में पूज्य आचार्यदेव श्रीमान् हरिभद्रसूरिजी म. का आश्वासन है-'गुरु पारतंते नाणं' अर्थात् गुरुकुलवास में ही ज्ञान प्राप्ति है ।' आप कहेंगे कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि ज्ञान को पाने के लिए गुरु सान्निध्य ही आवश्यक है । हो सकता है आपकी बात सत्य हो, लेकिन पाई भर | आंशिक, क्योंकि 'गुरु बिन' माहिती ज्ञान पाया जा सकता है अनुभूति ज्ञान नहीं पाया जा सकता | गुरु बिन ज्ञान की विशालता (ब्रॉडनेस) पाई जा सकती है लेकिन ज्ञान की गहनता (डीपनेस) नहीं पाई जा सकती ।
(२) गुरु उपासना से प्रभु प्राप्ति भी - जी.. हां गुरु उपासना से सिर्फ ज्ञान ही नहीं भगवान् भी प्राप्त किए जा सकते हैं | स्वयं श्रीमद् हरिभद्रसूरिजी म. षोडशक जी में कहते हैं -'गुरुपारतंत्र्यंच-तद्बहुमानात् सदाशयानुगतं परमगुरुः प्राप्तेः बीजम्' गुरुकुलवास-गुरुबहुमान ही परमगुरु की प्राप्ति का बीज है।
इस वाक्य से गुरु उपासना की महत्ता और भी बढ़ जाती है ।
ચિત્તની સ્વસ્થતા-આગમ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org