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गच्छाचार पयन्ना
★ किसी चिन्तक ने एक छोटी मगर बहुत वजनदार बात कही है कि यदि आपके पास सिर्फ दो ही रुपए हों, तो आप उन दो रुपयों में से एक रुपए की रोटी खरीदिएगा और एक रुपए की अच्छी पुस्तक | क्योंकि पहले एक रुपए की खरीदी गई रोटी आपको जीवन देगी और दूसरे एक रुपए की खरीदी गई अच्छी सी पुस्तक आपको जीवन जीने की कला देगी ।
इस छोटी सी बात का मर्म यही है कि परिस्थिति चाहे जो हो पर जीवन जितना कीमती है उतनी ही कीमती है जीवन जीने की कला । अध्यात्म क्षेत्र में भी यही बात लाग होती है कि संयमजीवन जितना अनमोल है उतनी ही या यूं कहे कि उससे भी ज्यादा अनमोल है संयम जीवन जीने की कला |
श्री गच्छाचार पयन्ना' में साधु जीवन जीने की कला सिखाई गई है | साथ ही सुगच्छ, कुगच्छ के लक्षण, गच्छनायक (आचार्य) के लक्षण तथा गच्छवासी साधु-साध्वी के लक्षणों का पूरी सजागता के साथ विश्लेषण किया है.... जो संक्षेप में इस प्रकार हैं .
★ 'जिस गच्छ में गुरुदेव (आचार्यश्री) अपने शिष्यों में , श्रमण संस्कारों का शिक्षण आत्मीयतापूर्वक करे वह सुगच्छ कहलाता है ।'
सुगच्छ निर्माण की सबसे प्राथमिक शर्त है - श्रमण संस्कारों की तालीम | शिक्षण । ऐसे सुसंस्कार जो शिष्यों की साधुता को पल्लवित और विकसित
कर सके । समाचारी, परम्परा, सिद्धान्त, स्व-पर आगम का गहन On अभ्यास ही इन संस्कारों की नींव है |
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યમનો યમ-આગમ
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