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पयन्ना-सूत्र
पू. मुनि श्री आनन्दचन्द्रसागरजी
• गच्छाचार पयन्ना • गनिविद्या (गणिविज्जा) पयन्ना • देवेन्द्रस्तुति (देविन्दत्युइ) पयन्ना • संस्तारक पयन्ना • मरण-समाधि पयन्ना
'स्वप्राप्त धर्मस्थानस्य परस्मिन्नपि यथोपायं सम्पादकत्वम्' विनियोग योगविंशिका सूत्र की टीका में महोपाध्याय पूज्य यशोविजयजी म. विनियोग की सुन्दर परिभाषा | व्याख्या बतलाते हैं । वे कहते हैं 'जिस धर्मसिद्धि को हमने हासिल की है | प्राप्त की है उसे औरों तक पहुँचाना , उसे दूसरों में बांटना ही विनियोग है।
इतिहास साक्षी है कि सर्वश्रेष्ठ कक्षा का विनियोग किया है तारक परमात्मा श्री वीर प्रभु ने । आज से २५५६ साल पहले वैशाख सुद १० के दिन प्रभु ने कैवल्य की सिद्धि प्राप्त की और वैशाख सुद ११ के दिन विनियोग का विधिवत् शुभारंभ किया ।
शुरुआत में प्रभु वीर ने मंत्र स्वरूप तीन ही शब्द (उप्पन्नेइवा , विगमेइवा , धुवेइवा) प्रदान किए । पता नहीं इस विनियोग में ऐसा न जाने कौन सा करिश्मा या जादू था कि शब्द प्रदान के बाद 'अंर्तमुहूर्त-मात्र' में (४८ मिनिट से भी कम समय में) द्वादशांगी रुप विशालकाय 'ज्ञान सागर' गणधर भगवंत के मानस में लहरा गया ।
सिर्फ १५ दिन में ४५ आगमों की परिचय वाचना ।' इस आयोजन की बुनियाद भी विनियोग ही है | वजह यह है कि 'आगमोद्धारक पूज्य आचार्य देवेश श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. के स्वर्ग गमन का यह अर्ध शताब्दी वर्ष चल रहा है । इस अर्धशताब्दि वर्ष को लेकर परम पूज्य परमोपकारी गुरुदेव श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी म.सा. के अंतर में एक तमन्ना कभी
ધર્મકથાનું ધામ-આગમ
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