SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यूँ देखा जाय तो चन्द्र से राह बहुत छोटा है अतः वह सम्पूर्ण चन्द्र के आगे आने की स्थिति में भी चन्द्र को ढंक नहीं सकता । किन्तु स्फटिक की शीला पर यदि हम काली श्याही का एक बिन्दु भी डालेंगे तो वह सम्पूर्ण शिला श्याम दिखाई देगी । राहु का विमान भी काला है अतः स्फटिकमय चन्द्र बड़ा होने पर भी कालाराहु उससे श्याम हो जाने पर नहीं दिखाई देता है । इत्यादि कई बातों को प्रश्नोत्तर पद्धति से इन सूत्रों में समझाने का प्रयास किया गया है । साथ साथ इन उपांगो में अन्यदर्शनीयों की सूर्य चन्द्रादि के लिए क्या क्या मान्यताएँ है उनका पक्ष एवं सत्य बता कर चर्चा की गई है | अन्य दर्शनीयों के अनुसार सूर्य चन्द्रादि की गति की भिन्न भिन्न मान्यताओं का भी निर्देश किया गया है । इस पर तात्त्विक, तार्किक एवं मार्मिक चर्चा कर सत्य का निरुपण किया गया है। निरयावलिका सूत्र आपकों निरयावालिका सूत्र का परिचय कराने जा रहा हूँ | इस सूत्र का नाम निरयावलिका है इसका कारण यह है कि इस सूत्र में नरक में जाने वाले जीवों की श्रेणी का वर्णन है इसलिए इसका नाम निरयावलिका श्रुतस्कन्ध है। निरय याने नरक में जाने वाले जीवों की श्रेणी जिसमें वर्णित हो वह निरयावालिका सूत्र । वस्तुतः इसके पांच वर्ग हैं और मात्र प्रथम वर्ग में ही नरक में जाने वाले जीवों की कहानियों का वर्णन है शेष चार वर्ग में तो स्वर्ग में जाने वाले जीवों की कहानियाँ और उनके गत जन्मों का वर्णन किया गया है, किन्तु यह नाम प्रथम वर्ग को लक्ष्य बनाकर ही रखा गया है | वैसे भी आठवें सूत्र अन्तगढ दशांग का उपांग का नाम कल्पिका है | यही कल्पिका याने निरयावलिका है । क्योंकि अन्य चार वर्ग भी अन्य अन्तिम चार सूत्रों के स्वतन्त्र उपांग है ! अत: यह नाम इसलिए भी ठीक है कि कल्पिका सूत्र में श्रेणिकराजा के कालकुमारादि वैशाली के चेटक राजा के साथ युद्ध में मरकर नरक में गए हैं, उनका अधिकार है । इस निरयावालिका प्रथम वर्ग कल्पिका के दस अध्ययन हैं । इनके प्रत्येक अध्ययन में श्रेणिक राजा के कालकुमारादि एक एक राजकुमार શૈલીનું શિક્ષ-આગમ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005576
Book TitleJinagam Sharanam Mama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgamoddharak Pratishthan
PublisherAgamoddharak Pratishthan
Publication Year
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy