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देवी देवताओं के घर भी हैं ।
ये सभी विमान अर्धगोलाकार हैं किन्तु फिर भी हमें सम्पूर्ण गोल दिखाई देते हैं | कारण स्पष्ट है कि हमारी आंखों की लेंस ही कुछ ऐसी है कि वह दूर की सभी वस्तुओं को गोल देखती है |
इन सभी ज्योतिष चक्रों में सूर्य और चन्द्र को इन्द्र माना गया है । ६४ इन्द्रों की गणना में ज्योतिष्क के दो इन्द्रों का समावेश हैं वे यही सूर्य और चन्द्र नामक इन्द्र है |
सूर्य चन्द्र के भ्रमण से ही दिन रात , तिथियाँ बनती है । किन्तु ढाई द्वीप के बाहर सूर्य चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारे सभी स्थिर हैं अतः वहाँ दिन रात की व्यवस्था नहीं है ।
मनुष्यलोक में सूर्य और चन्द्र का अन्तर निश्चित नहीं है किन्तु मनुष्य क्षेत्र के बाहर इनका अन्तर ५०००० योजन नियत है | चन्द्र शीतल एवं सूर्य उष्ण लगते हैं किन्तु ये न तो शीतल हैं न उष्ण । बल्कि समशीतोष्ण हैं |
वास्तव में सूर्य-चन्द्र का उदय या अस्त नहीं होता है । ये सदा काल प्रकाश देते रहते हैं परन्तु ये जहाँ जिन क्षेत्रों में दिखाई पड़ते हैं वहाँ उदय और न दिखाई देने की स्थिति में अस्त मानने का व्यवहार है ।
___ चन्द्र के विमान के नीचे स्फटिकरत्नमय मृग-हिरन का निशान है । अतः जब पूनम का चाँद सोलह कला से खिला हो तब उसमें हिरन दिखाई देता है ।
हमारे यहाँ दूज के चाँद के दर्शन करने का रिवाज है । उसका कारण चन्द्र में शाश्वत जिनेश्वर का जिनालय जहाँ है उतना ही हिस्सा दूज को दृश्यमान होता है अतः हम लोग शाश्वत प्रभु को नमस्कार कर लेते हैं ।
पूनम और अमावस्या का कारण राहु का विमान है । राहु हमेशा चन्द्र से चार अंगुल नीचे चलता है किन्तु उसकी गति कुछ ऐसी है कि वह धीरे धीरे चन्द्र के आगे आते जाता है | कृष्ण पक्ष में वह जैसे जैसे चन्द्र के आगे आता है तब चन्द्र ढंक जाता है । अमावस्या क दिन राहु का विमान सम्पूर्णतया चन्द्र के सामने आजाने से चन्द्र ढक जाता है एवं दिखाई न पड़ने पर हम अमावस्या मान लेते हैं एवं शुक्ल पक्ष में पुनः वह अपने स्थान पर आता है एवं चन्द्र
थोड़ा थोड़ा दिखाई देता है एवं राह सम्पूर्ण अपने स्थान पर आ जाने ॐ पर चन्द्र सम्पूर्ण दिखाई देने की स्थिति में पूनम हो जाती है।
શંસયનો વ્યય-આગમ
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