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निर्देश किया है ।
इन दोनों उपांग के रचियता कौन महापुरुष थे ? यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित है । किन्तु इन सूत्रों की रचना शैली से प्रतीत होता है कि वे कोई महान विद्वान पूर्वधरों द्वारा ही निर्मित हुए हैं ।
वैसे ऐसे भी माना गया है कि जिन आगमों के रचियताओं के नाम उपलब्ध न हों वे सभी रचनाएं गणधर भगवन्तों के द्वारा रचित है । वे आगम गणधरकृत हैं ।
ये दोनों सूत्र प्रश्नोत्तर पद्धति से बनाए गए हैं । मुख्यतया प्रश्नकर्ता गणधरदेव गौतमस्वामी हैं और प्रत्युत्तर प्रदाता श्रमण भगवान महावीर हैं । सूर्य चन्द्र प्रज्ञप्ति में किस तिथि को कितने नक्षत्र हैं ? दिन, रात, मास, संवत्सर एवं इनके पर्व आदि विषयों को बखुबी समझाया गया है ।
पक्ष
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जम्बू द्वीप में २ सूर्य चन्द्र, लवण समुद्र में ४ सूर्य चन्द्र, घातकी खण्ड में १२ सूर्य चन्द्र, कालोदधि समुद्र में ४२ सूर्य चन्द्र एवं पुष्करार्ध द्वीप में ७२ सूर्य चन्द्र हैं । इस तरह मनुष्य क्षेत्र में १३२ सूर्य चन्द्र हैं । ये सभी समश्रेणी से मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए घूमते हैं । यही कारण है कि स्नात्रपूजा में भी पूज्य वीर विजयजी म. ने भी कहा -चन्द्र की पंक्ति ६६-६६ रवि श्रेणी नर लोके ।
इन सूत्रों में तारे, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र और गृह की गति का वर्णन भी प्राप्त होते हैं । इसमें सबसे मन्द गति चन्द्र की है । चन्द्र से कुछ तेज सूर्य चलता है । सूर्य से तेज रफ्तार ग्रह की है । ग्रह से तेज गति नक्षत्रों की है एवं सबसे तेज रफ्तार तारों की है, किन्तु समृद्धि में सबसे अधिक समृद्धवान चन्द्र को बताया है एवं सबसे हीनसमृद्धि तारों की दर्शाई गई है ।
समभूतला पृथ्वी से ७९० योजन पर तारों के विमान है ८०० योजन पर सूर्य, ८८० योजन पर चन्द्र माँ ८८४ योजन पर नक्षत्र एवं ९०० योजन पर ग्रह के विमान घूमते रहते हैं ।
आपने घूमती हुई होटल तो देखी होगी किन्तु घूमते फिरते घर देखने का काम नहीं पड़ा होगा । हमारे शास्त्र - कार भगवन्तों ने हमें घूमते फिरते घर बनाए हैं । ये सभी चन्द्र सूर्यादि के घूमते विमान न सिर्फ विमान ही हैं बल्कि ज्योतिष्क देवों के निवास स्थान भी हैं इन विमानों में असंख्य
નય-વિનયનો સમન્વય-આમમ
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