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सुलभता से प्राप्त हो सकें इस हेतु उन्हें मुद्रित करवाना ही श्रेयस्कर मार्ग हैं।''
तदनुसार आगम उद्धार की आपश्री की बात स्वीकार कर सुरत संघ ने पूज्यश्री को सम्पूर्ण सहयोग देने का वचन दिया और विगत् १५४१ वर्ष के प्रदीर्घावधि पश्चात् श्रद्धेय आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने पुनः कमर कसी और आगम उद्धार के भगीरथ कार्य में लग गये । उन दिनों आगम शास्त्र ताडपत्र या भोजपत्र पर अंकित थे । वर्षों बीत जाने के कारण ताडपत्र सड़ गल गये थे, कहीं जीर्ण हो गये थे तो कहीं अक्षर ही लुप्त हो गए थे । ऐसी विकट स्थिति में इन महापुरुषने खुद ही प्रेस कापी तैयार कर प्रूफ सुधारने से लगाकर सभी प्रकार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी स्वयं वहन कर आगम शास्त्रों को प्रेस में मुद्रित करवाया ।
इतना ही नहीं श्रमणसंघ में जिनागम अध्ययन, मनन और चिंतन की रूचि पैदा हो, इसके लिए आपश्रीने आगम वाचनाएँ देना आरम्भ किया । अपने जीवन काल में सामुदायिक रुपसे सात स्थानों पर आपश्री ने आगम वाचनाएँ बिना किसी भेदभाव के सभी गच्छ समुदाय के श्रमणवर्ग की उपस्थिति में दी ।
सर्वप्रथम वीर निर्वाण संवत् २४४१ और विक्रम संवत् १९७१ में पाटण की धरती पर पूज्यश्री ने श्री दशवैकालिक सूत्र तथा भगवती सूत्र में आती षट् त्रिशिंकाओं की वाचना दी। ' वीर निर्वाण संवत् २४४२ और विक्रम संवत् १९७२ में कपडवंज शहर में श्री ललित विस्तरा ग्रन्थ , अनुयोगद्वार सूत्र पूर्वार्ध, आवश्यक सूत्र भाग १, योगदृष्टि समुच्चय, उत्तराध्ययन सूत्र भाग १ आदि पाँच ग्रन्थों पर आपने आगम वाचना प्रदान की ।
इसी वर्ष पूज्यश्री ने अहमदाबाद शहर में श्री विशेषावश्यक सूत्र ८/४, और श्री स्थानांग सूत्र पूर्वार्ध की आगम वाचना दी ।
वीर निर्वाण संवत् २४४३, विक्रम संवत् १९७३ में सुरत शहर में श्री विशेषावश्यक सूत्र , श्री स्थानांग सूत्र १/२, श्री औपपातिक सूत्र , श्री उत्तराध्ययन सूत्र भाग २ तथा श्री आचारांग सूत्र की आगम वाचना प्रदान की ।
पुनः इसी वर्ष सुरत शहर में श्री आवश्यक सूत्र भाग ३, श्री आचारांग सूत्र, श्री अनुयोगद्वार सूत्र - ३ पूर्वार्ध पर भी आपने वाचना प्रदान की ।
वीर निर्वाण संवत् २४४६, विक्रम संवत् १९७६ में महातीर्थ श्री शत्रुजय की तलहटी में श्री ओघ नियुक्ति, श्री पिंड नियुक्ति, श्री
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समानी सम-मागम
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