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________________ भारत के पूर्व और ईशान्य भाग में विहार कर गये । वहाँ बड़ी बड़ी नदियाँ होने से अकाल और अवर्षण का प्रभाव कम था । परन्तु वहाँ राज्य क्रान्ति की हवा पूरजोर से चल रही थी। इस तरफ वीर संवत् ११५ के लगभग नंद वंश को समाप्त कर मौर्य वंश का उदय हुआ था । परिवर्तन के कारण देश में सर्वत्र वैचारिक आँधी व्याप्त थी । असंतोष, वैर, अराजकता का सर्वत्र बोलबाला था । शांति और स्थिरता के दर्शन कही दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे | जैन मुनियों के विहार केंद्र रूप मगधदेश की राजधानी पटना और पंजाब के बीच तो भीषण परिस्थिति थी । अतः संगठित जैन मुनि संघ इधर उधर बिखर गया था । परिणामस्वरूप आगमों का अध्ययन मनन एवम् चिंतन प्रायः बन्द हो गया था । ठीक वैसे ही कई आगमधर ज्ञानी महापुरुष स्वर्ग सिधार गये थे और जो शेष बचे थे, उनका ज्ञान भी शीर्ण होने की स्थिति में था । परिणामस्वरूप भगवान महावीर से प्रचलित कण्ठस्थ मुखपाठ परम्परा पर बारह वर्षीय अकाल की अवधिका भयंकर आघात हुआ | प्राप्त परिस्थिति से निपटने हेतु वीर निर्माण संवत् १६० के लगभग पाटलीपुत्र में पूज्य आचार्य श्री स्थुलीभद्रसूरीश्वरजी महाराज के सान्निध्य में सर्वप्रथम श्रमणसंघ एकत्रित हुआ । वहाँ उपस्थित मुनिश्रेष्ठों में से जिन्हें जो भी याद था वह गीतार्थ मुनियों को सुनाया और गीतार्थों की सलाहानुसार उसी स्थान पर ग्यारह अंगों की संकलना व्यवस्थित रूप से सम्पन्न की गई । इस तरह महावीर भगवान की मूल वाणी को आचार्य श्री स्थूलीभद्रस्वामी के नेतृत्व में श्रमण संघ ने अभयदान प्रदान किया और नष्ट हो रहे आगमों को पुनः जीवित रखने का पहली बार प्रयास किया गया । यही आगे जाकर प्रथम वाचना कहलाई। दूसरी आगम वाचना कालान्तर से जिन कल्प के अभ्यासी श्री आर्यमहागिरिजी महाराज साहब के गुरुभ्राता श्री आर्यसुहस्तिसूरिजी महाराज साहब के नेतृत्व में तथा उनके द्वारा प्रतिबोधित सम्राट सम्प्रतिने वीर निर्वाण संवत् १६० में जिनागम को सुरक्षित रखने हेतु पाटलीपुत्र में सम्पन्न प्रथम आगम वाचना को मद्देनजर रख, मुनिवरों के असंग जीवन, सदैव सामूहिक न रहने से आगमों को मुखपाठ रखने में आनेवाले विविध अवरोध और रूकावटों को परिलक्षित armaxmaa हासानanोधोध-माम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005576
Book TitleJinagam Sharanam Mama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgamoddharak Pratishthan
PublisherAgamoddharak Pratishthan
Publication Year
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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