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________________ 'कों ने कहा कि मौलबीजी आप हमारे प्रश्न को नहीं समझे, हम कहते है अपने खुद को हमारे सामने आप खड़ा कर देवें, हम आपके ख़ुदा को एसा देखना चाहते है कि जैसे बटेश्वर के मेले में घोडे, हाथी, देखे जाते हैं । मौलबी जी घबडाये और बड बडाते हुए वहां से निकल भागे वाह साहब ! खुदा नही किसी किसान का बैल है। जो आपके सामने बांध कर ला दिखावे । इसी तरह पादरी साहब भी टर्राये कि हमारे बाइबिल में अमुक स्थल पर ईश्वरगोड का होना साफ लिखा है। नास्तिकों ने वहीं प्रश्न किया कि उस गोड को हम यहा दिखा दो । पादरी भी चले गये । आर्या समाजी भी हुज्जत बाजी पर उतर आये बोले कि अमुक वेद ऋचा अमुक में साफ लिखा है कि वह ईश्वर है । पर वो निराकार है । नास्तिकों ने कहा हाँ, हां वही ईश्वर निराकार को साकार करके दिखादो - समाजी भाई बोले, बेद के लेख को कोई गलत नहीं कर सकता, नास्तिक बोले समाजी जी ! आपके पिता ने इससे पाँच लाख रुपये उधार लिए है। यह हमारे यहां बड़ी खाते में दर्ज है' सो दे जावो: समाजी जी बोले – हजारे पिता ने कभी तुम्हारे यहाँ से पाँच लाख रुपया ३६ नहीं लिया तुम झूठे और तुम्हारा बही खाता झूठा ! Jain Education International नास्तिक ने कहा कि समाजी जी जब आपके बेद के लिखा ईश्वर सच होगा तो हमारे बही खाते का लेख भी सच होगा फिर क्या था. समाजी भाई बिगड़े और गाली गुफ्तार देते वहां से खसक गये । इसी प्रकार अन्य धर्मावलम्बी भी एक करके सटक नारायण हो गये । जिस समय नास्तिकों के प्रश्न सुनकर बड़े बड़े धर्मावलम्बी तीरंदाज वहां से दुम बाकर भाग गये । तव यह ओल्डफैसन वाला हिन्दू सनातन धर्म का नेता खड़ा हुआ और ललकारकर उन नास्तिकों को चेलेंज दिया । बोला-प्यारे नास्तिकां ! हमारी सुनो ! दाल जल्दी पक जावे इसलिए १८० डिग्रोकी आँच जलाने पर भी दाल जल्दी नहीं गलती, दाल को गलने के लिए समय की आवश्यकता होती हैं । इस लिए तुम लोगों को ईश्वर दिखाने मे समय लगेगा - हमारे यहां साकार को निराकार, और निराकार को साकार कर दिखाने की विद्या है । आपको हम अभी पतञ्जलि ऋषि के योग साधना कालेज में भरती कर अष्टाङ्ग योगाभ्यास द्वारा धीरे धीरे आपको उस ईश्वर का दर्शन करा सकते हैं । देखिये योग शक्ति में ऐसी विचित्र शक्ति है यह कला अन्य किसी धर्म में नहीं For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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