SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को भेजो। भारतवर्ष से शास्त्रार्थ करने के धर्म बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम आदि को हिन्दू लिये वेदव्यासजी भेजे गये। धर्म से टक्कर लेने का साहस ही कहां हो यह मामला पारसियों की धर्म पुस्तक सकता हैं। सशातीर में इस प्रकार लिखा है कि हमारे हिन्दू भाई लोग जब अपने दार्श'अकन बिरहमने व्यास नामी अजडिन्ट निक विचारो को जगत के समक्ष रखते है आमद बस ताना कि अकल चुनांनस्त ।' तब अन्य धर्मो की युक्तियां स्वतः काफूर हो जाती हैं। अर्थात् एक विद्वान बिरहमन व्यास नामी हिन्दूस्तान (भारत) से आया जो बडा अक्ल ____इसके लिए हम दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं मन्द था, जिसके बराबर अक्लमन्द कोई न था आजकल डान थ्यूरी के प्रभाव से नित्य इसके आगे १६३ आयत में लिखा है कि प्रति नास्तिकता बढ़ रही है । लोग धर्म त्याग 'चूं व्यास हिन्दी अलख आमद ___ नास्तिक बन रहे हैं। गस्ताशप जरतश्त श बरव्यान्द। ____ इन्ही नास्तिकों ने एक बार जलसा करके जब हिन्द का व्यास बलख में आया प्रत्येक जाति के वरिष्ट पुरुषों को निमन्त्रण तो ईरान के राजा गस्ताशप ने जरथश्त को देकर अपने जलसे में उन्होने प्रत्येक मजहब के लोगों से अपना शास्त्रार्थ किया । वे बुलाया। विशाल मञ्च पर खडे होकर प्रश्न पूछना और आगे लिखा है कि आरम्भ किया। उनका प्रश्न था कि प्यारे "मन मरदे श्रम हिन्दी निजाद” भाइयो । अपने दीन धर्म को आपलोग मानते मैं एक हिन्द में पैदा हुआ पुरुष हूं। है इसलिए आप लोग आस्तिक है और हम आगे लिखा हैं कि बे-दीन धर्म के है इसलिए हमे आप लोग ___“यहिन्द बाजगश्त" नास्तिक कहते है। . अर्थात् फिर हिन्द को लौट गया। ____ यदि हमारे प्रश्न का सही उत्तर देवेंगे ___ इस मामले को आज पांच हजार वर्ष तो हमलोग भी आपके दीन धर्म को स्वीकार हो गये, उस समय पारसी धर्म के नेता कर आस्तिक बन जावेंगे। हमारा प्रश्न है जरथश्त और व्यास में जो शाखार्थ हुआ कि आप यदि ईश्वर या खदा अथवा गोड उसमें हिन्दू धर्म ने विजय पाई। को मानते हो तो उसे हमारे सामने खडा वर्तमान समय में सबसे प्राचीन धर्म करके दिखादो । पारसियों का ही समझा जाता है, जो अन्यून बस इस प्रश्न को सुनकर प्रथम मौलवी पांच हजार वर्षों से चला आ रहा है । वह साहब कहने लगे कि हमारे कुरान शरीफ धर्म भी शास्त्रार्थ में वेद व्यास जी के सामने आयत फलाने और सिपारा अमुक में साफ शिकस्त खा गया तो अन्य इनेगने छुट-पुट लिखा है कि खुदा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy