SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदुत्व की प्रतिष्ठा ले. शुकदेवशरण ब्रह्मचारी कोई भी देश हो वह किसी न किसी ने कई बार आक्रमण करके, ईरान, अफगामहाद्वीप का अङ्ग होता है। अथवा स्वयं निस्तान, सहारा जिसमें अलजीरिया, मिस्र, वह स्वतन्त्र महाद्वीप होता है। जैसे हिन्दू- सूडान, लीविया, मराको, आदि आसपास के स्तान ईरान, अफगानिस्तान आदि देश हैं, पडोसी देशों पर विजय पाई और तब से इन पर एशिया महाद्वीप के अन्तर्गत है । एशिया देशो में मुस्लिम सल्तनत होकर मुहम्मदी नाम का कोई देश नहीं । एशिया महाद्वीप है। धर्म का प्रचार हो गया। ___ आफ्रिका नाम का कोई देश नहीं, आ- इस मारकाट के तूफान से बचकर ईरान फ्रिका स्वयं महाद्वीप है उसके अन्तर्गत कई देश से कुछ पारसी लोग लुक-छिप कर मूल देश है। भारत में आये उस समय भारत के गुप्तवशाकों के लेख के अनुसार भरतखण्ड के शीय हिन्दू राजाओं ने उन्हे अपने शरण में अतिरिक्त प्रायः समस्त भूखण्ड 'दिव्य है। जहां रक्खा और तब से ये ईरानी (पारसी) भारत तक मनुष्यों की आने जाने की गति है वह भरतखण्ड ही है। .. ये पारसी लोग अग्नि पूजक होते हैं, ... इस भरत खण्ड के ही प्रायः समस्तद्वीप यज्ञोपवीत धारी होते है, पर अपने आर्यावर्त महाद्वीप, वन, पर्वत समुद्र आदि है अर्थात् के पवित्र हिन्दू जैसे नही । उनकी संस्कृति एशिया, यूरोप, आफ्रिका, अमेरिका आदि जितने विकृत हैं। द्वीप द्वीपान्तर हैं। सब के सब भरतखण्ड के तथापि उन पारसियों ने अपने धर्म गुरू ही अंग है। जरथुस्त के आदेशानुसार अपने धर्म को उच्च असल मूल भारत कन्या कुमारी से कोटि में लाने के लिये आज से पांच हजार "हिमालय के बीच का भाग है इस भाग में वर्ष पूर्व प्रत्येक देश देशान्तरों से विद्वान, वर्तमान नेपाल, भूटान, तिब्बत, ब्रह्मदेश पांडित, काजी, मौलवी, धर्मगुरु आदि को पश्चिम की ओर ईरान, अफगानिस्तान, बलू- चेलेंज देकर शास्त्रार्थ के लिये निमन्त्रण दिया। चिस्तान, अरबस्तान जिसे द्रुमकुल्य-अभीरा- भारतवर्ष में भी एक पत्र आया कि स्तान कहा जाता है ये सब देश शामिल हैं। ईरान में एक नवीन मत खड़ा हुआ है उसके मुसलमानों के पैगम्बर मुहम्मद साहिब साथ शास्त्रार्थ करने के लिये किसी विद्वान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy