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________________ पश्चिमीय विद्वानो के प्रायः सभी सिद्धान्त पाठक इस 'प्राचीन भारतवर्ष और हिमाअनुमान पर अवलंबित है और वे अनुमान लय की सीमा' नामक निबन्धको पढकर समझ चाहे इतिहास के हो चिकित्सा के हो प्रायः सकेगे कि पुराणों के मतानुसार जहां तक गलत ही सिद्ध होंगे। भी मनुष्यों का आवागमन संभव हैं, वह पुराण गप्प है, इतना कहकर उनकी सब भारतवर्ष की ही सीमा है, सात द्वीपों उपेक्षा नहीं की जा सकती। मैंने जब 'बद्री में से पूरा जम्बूद्वीप भी नहीं है। नाथ दर्शन' पुस्तक लिखी तब केदार खण्ड जम्बूद्वीप के जो नौ वर्ष है, उनमें से पढने की आवश्यकता हुई। उसे पढकर मुझे इलाव्रत खंड, रम्यकखंड हिरण्यमयखंड, महान आश्चर्य हुआ । कुरुखंड, हरिवर्ष खड, किंपुरुषखड, भद्राश्वसंड बद्रीनाथ के आगे के स्थान जो आज से और केतुमालखड ये आठ दिव्य है, भू ५० वर्ष पूर्व अत्यन्त ही दुर्गम माने जाते स्वर्ग है। थे, जहां साधारण व्यक्ति जा नहीं सकते द्यौलोक आकाश के स्वर्गीय पुरुष जिनका उनका सहस्रो वर्ष पूर्व ऋषियो ने कैसा पुण्य शेष रह जाता है, वे अपने पुण्यों को सजीव वर्णन किया है। पढकर आश्चर्य भोगने इन भूस्वर्गो में आते है, होता है। एक अंगरेज ने लिखा है, मैंने -- उनकी आयु ५० हजार वर्ष की होती नील नदी के उद्गम का पता पुराणों से है, ये लोग कम नहीं करते, पुण्यों का पढकर ही लगाया है। उपभोग मात्र करते है। - महाभारत के पढने से ऐसा पता चलता इसी से इन जम्बूद्वीप के ये ८ खंड और है कि इस भारतवर्ष के जो नौ विभाग हुए शेष ६ द्वीप भोग भूमि कहलाते है, कम भूमि वे सब भारत से भिन्न नहीं थे। उन में तो यह भारत वर्ष ही है। बहुत से राज्य जंगली थे और बहुतो में यूरोप, अमेरिका, आफ्रीका, एशिया ये वनवासी लोग निवास करते थे। सब भारत वर्ष के ही अन्तर्गत है। - ये इंगलेड आदि का इतिहास तोहजार इस विषय का विस्तार से वर्णन हम डेढ हजार वर्ष का ही है। फीजी, मारीशस अपनी भागवती कथा भागवत दर्शन के अन्तआदि टापू तो हमारे सामने अभी अभी र्गत "भागवती भूगोल" नामक खंड में करेगे. ५०/६० वर्ष पूर्व ही विकसित हुए। हमारी लिखी भागवती कथा के अभीतक जिसे आज विश्व कहकर पुकारा जाता ६९ खंड प्रकाशित हो चुके है, आगे के है, यह सब पहिले भारतवर्ष के ही खंडो में भागवती भूगोल, खगोल तथा अन्तर्गत था । अन्यान्य भी बहुत ज्ञातव्य विषय रहेगे। ____ इस विषय में पुराणों के प्रमाण दे कर अभी तक पृथिवी के सात द्वीप ८ खडॉ हमारे ब्रह्मचारी श्री शुकदेवशरणजीने इस का भी मनुष्य पता नहीं लगा सके है, तो मिबन्ध में दर्शाया है। फिर इस शरीर से मंगल या चन्द्रलोक तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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