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इस प्रकार पृथ्वी के गेंद समान गोल चलता हुआ दीखता है । उस ही प्रकार में जो पाश्चात्य विद्वानांने हेतु दिये हैं वे चलती हुई पृथ्वी पर बैठे मनुष्यों को भ्रम सब हेत्वाभास होने से अपने साध्य की से सूर्य देशान्तर प्राप्त दीखता है। सिद्धि करनेमें कदापि समर्थ नहीं हैं । अब सो यह शंका युक्ति संगत नहीं है क्योंकि पृथ्वी के गतिमान होने पर विचार किया प्रत्यक्ष प्रमाण में जब तक बाध प्रत्यय (बाधक जाता है ।
हेतु का उदय नहीं होता तब तक प्रत्यक्ष पृथ्वी की दो प्रकारकी गति सिद्ध करने प्रमाण को मिथ्या नहीं कह सकते । अन्यथा के लिए दिन रातका होना तथा ऋतु प्रत्यक्ष प्रमाण के उच्छेद का प्रसंग आवेगा । परिवर्तन ये दो हेतु दिये हैं, परंतु ये हमारी सभ्य मंडली पृथ्वी के भ्रमण दोनों ही हेतु व्यभिचारी हैं।
करने में यह अनुमान देती है कि पृथिवी क्योंकि 'जिस प्रकार सूर्य को स्थिर सूर्य के चारों तरफ घूमती है क्योंकि तारामानकर पृथ्वीके घूमने से दिनरात तथा ऋतु गण के स्थिर होते संते उदय और अस्तकी परिवर्तन की संभावना है उस ही प्रकार प्रतीत होती है सो इस हेतु में भागासिद्ध पृथ्वी को स्थिर मान सूर्य को घूमता हुआ नामा देोष है, अर्थात् हेतु का एक भाग मानने से भी दिन रात और ऋतु परिवर्तन तारा गण का स्थिर पण असिद्ध है। इस परसे की संभावना है अथवा ये हेतु अनुमान हमारी सभ्यमंडली तारागण की स्थिरता सिद्ध बाधित भ्रामक हेत्वाभास है।
करने के लिये यह अनुमान देती है कि . क्योंकि सूर्य को गतिमान सिद्ध करने तारागण स्थिर हैं क्योंकि ध्रुव तारों से करनेवाले अनुमानका सद्भाव है। वह अनु- सदाकाल समान अंतरपर रहते हैं, सेा यह भी मान इस प्रकार है-सूर्य गतिमान है, क्योंकि व्यभिचारी है। देश से देशांतर प्राप्तिमान है । जो २ देशले क्योंकि चलायमान तागगण में केन्द्र देशान्तर प्राप्तमान होते है बे रगतिमान होते है मानकर शेषके प्रत्येक तारेकी दूरी पर एक जैसे रेल नौका आदिक । सूर्य भी देश से एक वृत्त (Circle) खींचा जाय और वे तारे देशान्तर प्राप्तिमान है, इस लिये गतिमान है। उन वृत्तांके घेरो (Circumferrences) पर
यहां पर यह शंका हो सकती है कि, भ्रमण करें तो तारागणों के चलायमान होते यह हेतु असिद्ध है क्योंकि वास्तव सूर्य एक गंते भी ध्रुव तारे से सदा समान दूरी रह देश से देशान्तर का नहीं जाता है, वह सकती है इस लिये यह हेतु व्यभिचारी है वहीं पर स्थिर रहता है। देखने बालों को और व्यभिचारी हेतु से तारागण की स्थिरता जो सूर्य देश से देशान्तर प्राप्त दीखता है। सिद्ध नहीं हो सकती । . वह उनका भ्रमात्मक ज्ञान है । चलती हुई इस तरह पृथ्वी के भ्रमण में जो हेतु नाव में बैठे हुए पुरुष को जैसे किनारा “तारागण के ध्रुव होते संते उद्यास्तकी प्रतीत
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