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________________ और तथ्य हीन है। साथ ही केवल धारणा कुछ ऊंचा हो जाना निरा दृष्टि भ्रम ही है के आधार पर ही प्रचारित हुआ है। और कुछ नहीं । -: डा. वोलेसका प्रयोग : इसी प्रकार एक उदाहरण यह दिया अब एक दुसरा प्रमाण 'पृथ्वी गोल होने के जाता है कि पृथ्वीकी परिक्रमाके लिए निकले सम्बन्धमें दिया जाता है कि- डो. वोलेसने एक हुए राकेट आदि जहाँसे यात्रा आरम्भ करते प्रयोग किया था जिसमें उन्होंने एक मीलमें है। है, वे वहीं वापस आ जाते है, इससे यह तीन-तीन मीलकी दुरी पर बराबर उंचाई के प्रमाणित होता है कि पृथ्वी गोल है। तीन बांस पानी की सतह पर इस प्रकार खडे परन्तु यह बात भी विचार करने पर किये कि झीलकी सतह पर बांसो की उंचाई अप्रमाणित ठहरती है । क्योंकि अबतक जो बराबर रहे। यात्राएं हुई है, वे सभी पूर्व-पश्चिम की हुई है, और पूर्व दिशा काई निश्चित दिशा बादमें दूरबीन से देखने पर मालुम नहीं है । ध्रुव और उत्तर दिशाही ऐसी है हुआ कि बीच के बांसका सिरा कुछ ऊँचा कि जो निश्चित है, इसकी प्रामाणिकताके ऊठा हुआ था । यह बात तभी संभव हो, लिए हम सूर्योदयको प्रतिदिन प्रातः देखते हैं सकती है जबकि बीचका बांस पानीकी कुछ तो हमें ज्ञात होता है कि सूर्य के उदय का उंची सतह पर हो । परन्तु तीनो वांस स्थान धीरे-धीरे अग्नि कोण से बढता हुआ पानीकी सतहपर तैर रहे थे इस कारण यह ईशानकोण तक घमता रहता है। संभावना नहीं रही। ____ अतः जो यात्री पूर्व दिशाका और सूर्य के इससे यह सिद्ध हुआ कि यह बात उदय स्थान को केन्द्र मानकर यात्रा करते पृथ्वीकी गोलाईके कारण हुई । जिसके कारण हैं। वे पूर्व दिशाके निश्चित न होनेसे जैसे पानीकी सतहमी गोल होकर बीचमें कुछ सर्योदयका स्थान बढता जाता है, वैसे ही उठी हुई थी। ... वे यात्री भी बढते रहते हैं। किन्तु यह प्रयोग भी तक के सामने इस प्रकार वे यह मान बैठते है कि निराधार सिद्ध होता है, क्योंकि पानीका हम पूर्व दिशासे ही चले थे और वापस मूल स्वभाव समतल रूपमें रहनेका है। वहीं लौट आये है । अतः यह कोई नई वह चारों ओरसे समान रूपमें ही रहता है। बात नहीं हैं। उसमें कभी ऐसा नही होता कि जैसे गेहूँ, यह तो तब उचित कहा जा सकता है दाल आदि के समान किसी थाली में उसका जब कि यात्री ध्रुवके तारे को लक्षमें रखकर ढेरकर देनेपर बीचका हिस्सा ऊंचा हो यात्रा करे और पुनः वापस उसी स्थानपर जाय । आ जाय क्योंकि ध्रुव-तारे को जब हम देखते ___ ऐसी स्थितिमें पानीकी बीचमें ऊंचाई है वह अपने एक ही निश्चित स्थानपर अडिग होना और उसके आधार पर बीचके बांसका बना रहता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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