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भी भाग उसमें प्रतिबन्धक नहीं होता ।
तब क्या यह कहा जा सकता है कि दूरवीक्षण यन्त्र अथवा केमरे के लेन्स में पृथ्वी की गोलाईको हटानेका सामर्थ्य है और उसीसे ऐसा होता है ?
तब ऐसा क्यों होता है ? यदि यह पूछा जाय तो हमारा उत्तर होगा - यह दृष्टिभ्रम का फल हैं ।
-: दृष्टि भ्रम :
दृष्टि भ्रमकी वास्तविकता के लिए भी यहां प्रसंग वश एक दो उदाहरण दे देना उचित है।
१- हम रेल्वेकी दोना पटरियों के बीच खडे होकर देखेंगे तो 'दो चार फर्लांग तक तो वे दोनों पटरियां पृथक्-पृथक् दिखेगी किन्तु बादमें ऐसी दिखने लगेगी माना दोनेा एकाकार बन गई हो ?
किन्तु वे एकाकार तो होती ही नहीं है । यदि ऐसा हो तो रेलगाडी की क्या दशा हो, यह सर्वगम्य है अतः यह मानना पड़ेगा कि यह दृष्टि-भ्रम है । इसी प्रकार किसी डामर रोड पर जो कि प्रायः आधे मील तक चिना किसी मोडके सीधा चला जाता है, ऐसे स्थल पर खडे रहकर देखते हैं तो ज्ञान होता है कि वह रोड और क्षितिज (आकाश) एक दूसरे से मिल गये है । किन्तु जैसे ही हम आगे बढने लगेगे वह सड़क भी उतनी ही दूर क्षितिज से मिलती हुई दीखेगी।
यहां भी दृष्टि भ्रम के अतिरिक्त अन्य ऐसा कोई कारण नहीं; कि जो इस तथ्य को अप्रमाणित सिद्ध कर सके ।
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वस्तुस्थिति यह है कि 'मानवीय नेत्र गोलकोंकी रचना और उनकी दृष्टि मर्यादा किसी एक सीमा तक ही फलित होती है । नेत्र ज्योतिके द्वारा एक निश्चित दूरी से अधिक दूर तक देखने के लिए यन्त्रों की सहायता भी इसीका प्रमाण है ।
और यही कारण है कि आंखकी दृष्टि मर्यादा से अधिक यदि बिना यन्त्रकी सहायता के देखा जाता है तो जो चीज होती है उससे कुछ अन्य रूपमें दीखती है, वह केवल दृष्टि भ्रम ही होता है अन्य कुछ नहीं ।
हमारी आंखाकी रचना स्वभावतः इसी प्रकारकी है कि दृष्टि क्षेत्र से दूरी पर देखने से वह वस्तु गोलाकार ही दीखाई देती है ।
पर्वत पर चढकर दूर दृष्टि डालेंगे तो पृथ्वी और आकाश मिलते हुए दिखाई देगे ! इसी प्रकार आधुनिक भूमिति शास्त्रीय गणित के अनुसार भी हमारी दृष्टि अपने चारों और ४५ डिग्रीका कोण बनाती हैं । जिसका परिणाम होता है 'चारो ओर गोलाकारका आभास होना ।
साथ ही बहिर्गोल आंखा से जैसा प्रकाश बहार जाता है वैसे ही आकार में वस्तु दृष्टिगत होती है ।
इसकी प्रामाणिकता के लिए हम गोल अर्ध गोल, दो कोनेवाली अथवा चार कोनेवाली एक काचकी मूंगली अपनी आंख के सामने रखकर देखें तो दृष्टव्य वस्तु तदाकार ही परिलक्षित होगी ।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी का आकार गोल मानने के लिए दिया जानेवाला जहाजका उदाहरण सर्वथा तर्कहीन
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