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________________ क्या पृथ्वी गोल है ? ले. डो. रुद्रदेव त्रिपाठी M. A. P. H. D. DELIT दिल्ही ( आ लेख डा. त्रिपाठीए पू. उपा. श्री धर्म सागजी म. शिष्य पू. पं. श्री अभयसागरजी म. पासेथी सामग्री मेलवी ता. १५-१० - ६७ ना " नवभारत टाइम्स” (दिल्ही) दैनिक पत्रमां प्रकाशित करावेल ते लेख वधु महत्त्वनो समजी " नवभारत टाइम्स" मांथी साभार उद्धृत करी जिज्ञासुओना तिथे प्रस्तुत कर्यो छे सं.) हम अपने शालेय पाठयग्रन्थों के द्वारा अर्थात् सीमित ज्ञान के आधार पर पृथ्वी का आकार गोल मानते हैं । इस प्रकारकी मान्यताओ जैसी ही पाठ्य-पुस्तकों के क्रमिक ज्ञानसे पुष्ट हमारे भूगोल के अध्यापक भी अपना सहयोग प्रदान करते हैं । इस प्रकार 'द्विद्ध सुबद्ध ं भवति' वाली उक्ति हमारे लिए उस मान्यता पर दृढ बनने की प्रेरक हो जाती है, और हम कहीं किसी धार्मिक विद्वान के मुख से 'पृथ्वीका आकार गोल नहीं हैं' यह सुनते हैं तो कह उठते हैं - कि ये भूगोल क्या जाने ? और यदि वह हठ पूर्वक शास्त्रका उद्धरण दे बैठा तो कहेगे - "शास्त्रो में तो सब कपोल कल्पना अथवा दन्त कथाका ही संग्रह है जैसे रावण के दस सिर, वीर्यार्जुन हजार हाथ आदि । " सर्व प्रथम छात्रोंको पृथ्वी का आकार और उसकी गति समझते हुए पृथ्वी के गोल होने का यह प्रमाण दिया जाता है कि(१) समुद्र में दूर से आते हुए जहाज को यदि हम ध्यान पूर्वक देखते हैं तो सर्व प्रथम Jain Education International 0000000004 हमें उसका मस्तूल अथवा चिमनी ही दिखा देती है, बाद में वह जैसे-जैसे निकट आता है, वैसे ही उसका वास्तविक रूप हमारे समक्ष स्पष्ट होने लगता है । अतः इस प्रकार पहले दूरी से केवल मस्तूल या चिमनी ही देखनेका कारण यह है कि हमारी दृष्टि और जहाज के बीच पृथ्वीका गोल भाग आड में आ जाता है । अतः पृथ्वी गोल है । किन्तु इस सिद्धांतकी सत्यता का जब प्रत्यक्ष प्रयोग करके देखते हैं तो सर्वथा निर्मूल विदित होती है । क्योंकि जहाजका यदि हम किसी यथावस्थित दूरवाक्षण यंत्र से देखते है तो वह अपने पूरे आकार में दिखाई देता है । उसमें कभी ऐसा नहीं होता है कि कोई भाग नहीं दिखाई दे । यही नहीं, यदि हम किसी ऐसे कैमरे से चित्र लेते हैं जिससे कि दूरगत वस्तुका आकार यथावत् गृहीत होता है । तो उसमें भी जहाज का चित्र पूरा आता है और पृथ्वीकी गोलाईका कोई For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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