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________________ और अन्य प्रकरण प्रमुख एक कोटि क्योंकि, पृथिवी, कितनेही हिस्से ऐसें हैं (१०००००००) पुस्तक लिखें । वे पुस्तक कि, वे अभी तक जानने में नही आये है । भी, जैनो की गफलत, मतोंके झगडे, मुसल- थोडे अरसेकी बात है, एक अखबार मानेोके जुलमसें, और गूजर देशमें अग्नि (न्युसपेपर) में हमने वांचा है कि, अमेआदि के उपद्रवसे, बहुतसे नष्ट हो गए; रिकन शोधकांने यह विचार किया कि, यह और कितनेक भंडारोंमें बंद रहनेसे गल धूमस (धूवां) कहां से आती है ? तलाश करते गए; जैसे पाटणमें फेफिलियावाडेके भंडार में हुए उनको ऐसा मालूम हुआ कि, दुर फांसले एक कोटडीमें ताडपत्रोंके पुस्तकोंका चूर्ण पर एक शहर तीस हजार (३००००) घर, वा हुआ भुसकी तरह पडा है । और जेसल- मनुष्योंकी वस्तीवाला दीख पडा; उस विषयमें मेरमें तो, प्राचीन पुस्तकांका भंडार कहां है, वे लिखते हैं कि, हम नहीं जानते है कि, सो स्थानही आवकलोक भूल गए हैं । तो इस शहरका क्या नाम, और किस बाद डाक्टर बुल्लर साहिबने, मुंबई हातेमें डेढ शाहकी हकुमत इस पर है ? लाख (१५००००) जैनमतके पुस्तकोंका पता ऐसे ही पृथिवीके अनेक विभाग, विनालगाया है, और उनका सूचीपत्रभी अंग्रेजीमें जाने पडे है । तो फिर, हम कैसे सर्व छपवाया है ऐसा हमने सुना है। कल्पित-अनुमानिक बातेको मान लेवे ? जब इतने पुस्तक जैनमतमें नष्ट हो गए है तो, हमलोग क्यों कर जैनमतके पुस्तकोंके __तथा मि. वीरचंद राघवजी गांधी, बी.ए. लेखानुसार सर्व प्रश्नों का समाधान कर सके । के पास एक अमेरिकन विद्वानका बनाया कि इस अभिप्रायसे यह कथन किया है। हुआ 'अर्थ नोट एग्लोब' (Earth not a Globe) और इस कालमें जो बुद्धिमानांने पृथिवी नामका पुस्तक हमने देखा जिसमें ऐसा सूर्य आदिके चलनेका स्वरूप प्रकट किया है, लिखा सुना है, कि "पृथिवी गोल नहीं, सो अनुमान बांधके प्रकट किया है; परंतु किंतु चपटी (सपाट) है । सर्व स्वरूप किसीने आँखों से नही देखा है। तथा आकाशमें ऐसे तारे है । उनको . . क्योंकि दक्षिण उत्तर ध्रुवांतक कोई भी देख हम ऐसा अनुमान कर सकते हैं किपुरुष नही जा सकता है । और ध्रुवकी पृथिवी स्थिर है, और सूर्य चलता है, तरफ जानेका प्रयत्न करनेवाली कई मडलि. और जो कोई हमारे पास आके यह बात ओं का पता भी. बरफ के पहाडों में नहीं देखना चाहे तो, उसको हम दिखला सकते लगता तो उनके कहे हुए स्वरूपकी सत्यता भी है । तथा वेदेोंमें भी सूर्य चलता है, कैसे मानी. जावे ?.. ऐसे लिखा है। - (पू. श्री आत्मारामजी म. लिखित श्री “ तत्त्व निर्णयप्रसाद"मांथी साभार उद्भत). Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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