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मनुष्योंकी ९०० वा ८०० वर्ष की आयु हीरासिंह नाम का एक पुरुष २७ मण लोहेको लिखी है।
मूगली (मुद्गर-मोगरी) उठाता है, यह , इससे मालुम होता है कि इससे पहले हमारे प्रत्यक्ष देखनेमें आया है। प्राचीनतर जमानेमें मनुष्योमें बहुत बडी इसी तरह सर्वज्ञके कथन किवे प्राचीन आयुवाले मनुष्य थे ।
लेख कालांतरमें अल्पबुद्धिवालांकी समझमें इस समयमें भी हिन्दुस्थानकी अपेक्षा आने कठिन है। कितनेक देशामें अधिक आयुवाले मनुष्य प्रश्न : कितनेक कहते हैं कि जैनमतमें विद्यमान है; तो फिर असंख्यकालके पहिले पृथिवी स्थिर, और सूर्य चलता है ऐसा मनुष्यों की सर्व देशांमे शत (१००) वर्ष लेख है; और विद्यमान कालमें तो कितनेक. प्रमाण ही आयु माननी, यह बुद्धिमानेको पाश्चात्यादि विद्वान् कहते है कि, पृथ्वी, उचित है ? नहीं ।
___चलती है, और सूर्य स्थिर है। और कितनेक ___ इस वास्ते सर्व झोत पुस्तकों में जो जो कहते हैं कि, पृथिवी भी चलती है, और लेख है, सो सर्व सत्य ही है । परंतु जो सूर्य भी अपनी मध्यरेखा पर चलता है; तुमारी समझमें नहीं आता है, सो तुमारी यह क्यों कर है ? बुद्धिकी दुर्बलता है।
उत्तर : प्रथम तो हे भव्य ! जैनमतके .. क्योंकि जो कोई इस समयमें किसी चौदहपूर्व', एकादशांग, उपांग, प्रकीर्णक, नवीन पुस्तक में लिख जावे कि, एक पुरुष नियुक्ति, वार्त्तिक भाष्य, चूर्णी आदि जैसे सौं (१००) मण बोजा उठा सकता है, तो सुधर्म स्वामी गणधर आदिकोंने रचे थे, क्या तिस लेखको आजसे ५० (पचास) और जैसे वनस्वामी दशपूर्वधारीने उनका वर्ष पीछे तुच्छबुद्धिवाले मान सकते है ? उद्धार करके नवीन रचना की, सो ज्ञान परंतु यह वार्ता हमारे प्रत्यक्ष है, और एक प्रायः सर्व', स्कंदिलाचार्य के समयमें व्यपुरुष २७ मणकी लाहमयी मूगली (मुद्गर- वच्छेद हो गया है; उनमेसे जो सो किंचित मोगरी) उठा सकता है, तो क्या तीस मात्र रहा, सो नाम मात्र रह गया । फिर लेखको आजसे ५० वर्ष पीछे तुच्छ बुद्धि- उस ज्ञानको स्कंदिलादि आचार्य साधुयोंमे वाले मान सकते हैं ? नहीं ।
नाममात्र आचारांगादिकको एकत्र करके रचना परंतु यह वार्ता हमारे प्रत्यक्ष है। की, परंतु स्कंदिलादि आचार्य साधुयोंने
पंजाब देशके लाहार जिलेमें वलटोहे स्वमतिकल्पनासें कुच्छ भी नहीं रचा है, जो गामका रहनेवाला, फत्तेसिंह नामक एक शेष रह गया था, उसका ही तिस तिस. सीख ४० वा ५० वा १०० मणके बोजेवाले अध्ययन उद्देशेमे स्थापन किया । फिर अरहट (रेट) को उठा सकता है; और देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणं आदिकानें तोडपत्रोंपर पूर्वोक्त जिलेमें चावाला गामका रहनेवाला मूलपाठ, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, आदि
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