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________________ और कीनटोलोकस नामका राक्षस पंदरा ये पूर्वोक्त सर्व शोध अंग्रजोंने की है। (१५) फुट ६ इंच उंचा था, उसके खभेकी अब जो कोई कहे कि, इतने बडे चौडाइ १० फुटकी थी। शरीरवाले मनुष्य, मेंडक, गीरोलीको हम सारलामेनके वखतमें मालुम हुआ नहीं मानते हैं, तो फिर हम उनको क्या फरहीग्स नामका व्यक्ति २८ फुट उंचा था, यह यह प्रमाण देवे ? क्योंकि ऐसे अकलके पुतलों कथन गुजरातमित्रके (३० मे पुस्तकके तारीख (बारदाने) को तो सर्वज्ञ भी नही समझा १८ सपटेंबर सन १८७२ के) अकमें लिखा सकते हैं । और जो कोइ भूस्तर-विद्याकी शोधको सत्य करके मानते हैं उनके वास्ते तथा तारीख १२ नवेंबर सन १८७३ के तो पूर्वोक्त प्रमाण वहुत बलवान है कि, बंबई के गुजराती पत्र में लिखा है कि, - पिछले जमाने में मनुष्योंके शरीर बहुत बडे कदावर थे; इससे बहुत प्राचीनतर काल में हंगरीमें राक्षसीकदके एक मेंडक (दर्दुर दुदुर जो अवगाहना जैन सिद्धांतमें लिखी है, -देडका) का हाडंपिंजर मिला है, इस मेंडक में सो भी सत्य सिद्ध हो सकती है। को 'नीरीनथोडोन' के नामसे कहा जाता है. तथा मनुस्मृतिकी टीकामें श्री रामप्राचीन शोधेके करनेसे मालुम होता चंद्रजीकी आयु दशसहस्त्र (१००००) वर्षकी है कि ऐसी जातके मेंडक उस अतीतकालमें लिखी है । बहुत अस्तित्व धराते थे, परंतु आजकालमें ऐसे मेंडकका अस्तित्व है नहीं । तथा महाभारतके षोडश (१६) अध्यायमें ब्रह्माकी बेटी कश्यपकी स्त्री कदुके अंडेको इस मेंडककी खोपरी इतनी बडी है कि उसकी दोनों आंखोंके खाडके बीचमें १८ पकनेका काल पांचसौं (५००) वरस लिखा है, है'चका अंतर है, इसकी खोपरीका वजन ३१२ और वनिताके अंडेको पकनेका काल एक रतल प्रमाण, हैं, और सर्व डों के पिंजर सहस्र (१०००) वर्ष लिखा है ।। को वजन १८६० रतल प्रमाण है, अर्थात् - तथा महाभारतके एकोनविंश (१९) लगभग एक टन प्रमाण होता है । अध्यायमें राहुका शिर, पर्वतके शिखर ..तथा प्रोफेसर थीओडोर कुक अपने जितना बडा लिखा है। बनाए भूस्तर-विद्याके ग्रंथ लिखते हैं कि, तथा एकोनत्रिंश (२९) अध्यायमें षडू "पूर्व कालमें उडते गिरोली (छपकली- (६) योजन ऊँचा, और बारां योजन लंबा, किरली) जातके प्राणी ऐसे बडे थे, जिसकी हाथी लिखा है । पांच २७ फुट लंबी थी ।" तथा तीन योजन उंचा, और दश जब ऐसे प्राणी पूर्वकालमें इतने बड़े योजनका परिघ (घेरा), एसा कूम (कच्छुथे तो फिर मनुष्योंकी अवगाहना बहुत बडी काचबा) लिखा है । होने दो, इसमें क्या आश्चर्य है ? तथा नौरेजग्रंथमें नुह आदि कितनेक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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