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नष्टच्छायामहीवृत्तपादे दर्शनमादिशेत् । कि ब्रह्माण्डकक्षा १८७१२०८०८६४००००००
१२/६४ योजन के मध्य सूर्य-किरणे व्याप्त है। ० एक राशिके अपक्रमगत योजना भूवृत्त
. . आज के समान पृथ्वी का आकार पाद से घटा लेने पर जो योजन होते हैं, "
___ बनाने की बात भी कही गयी है । वहाँ से देवभागमें वृश्चिक-धनु-मकर कुंभस्थ
काठ की गोल पृथ्वी बनाकर, उसके दोनों सूर्य नहीं दिखते और असुर भाग में बृषादि सि
सिरों पर मेरुदण्ड (दोनों ध्रुव), आधार की
दो कक्षा और विषुवत् की कक्षा बनाई जाए। चार राशि तक सूर्य नहीं दिखते ।
श्लोक- भूभगोलस्य रचनां मेरु स्थित देवता लोग मेषादि चक्रार्धगत
कुर्यादाश्चर्यकारिणीम् । सूर्य को सदा देखते हैं। और असुर लोग
अभीष्टं पृथिवीगोल तुसादिगत सूर्य को वैसा ही देखते हैं ।
कारयित्वा तु दारवम् ॥ ___ भूवृत्त के पन्द्रह भाग दूर उत्तर अयन दण्ड तन्मध्यग मेरोरुभयत्रविनिर्गतम् । में देव भाग में और दक्षिणायन में असुरभाग आधारकक्षाद्वितय कक्षा वैषुवती तथा । में सूर्य मस्तक के ऊपर होकर भ्रमण करते
. १३/३-४
इस प्रकार सूर्य सिद्धांत में सूर्य तथा . जब भद्राश्व में मस्तक पर सूर्य होता पृथ्वी के विषय में जो तथ्य दिये गये हैं है, तब भारत में लंकोदयगत होता है। उनसे स्पष्ट है किकेतमाल में आधी रात और कुरुवर्ष में सूर्य गतिशील है । अस्तप्रायः होता है।
. पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घुमती है। ० देव तथा असुर एक बार उदित सूर्य . वह गोल है, पर मनुष्य बौना होने को छ मास तक देखते हैं।
से, उसे चक्राकार दिखाइ देती है। पितृ चन्द्रस्थ होने से एक पक्ष तक और उस पर जब एक ओर दिन होता है पृथ्वी के लोग दिन भर सूर्य दर्शन कर सकते तो दूसरी ओर रात होती है और कहीं हैं (१२/७४) ।
संध्या, कहीं सूर्योदय तथा कहीं मध्याहू ० सूर्य को कक्षा को ६० से गुणा करने
होता है। पर बनी भ-कक्षा सबसे ऊपर भ्रमण करती है ।
. सूर्य तथा उससे प्रकाशित पृथ्वी के
विभिन्न भागों की भी यहाँ चर्चा की गयी है। ___एक कल्प में चन्द्र के भमण चन्द्रकला ये समस्त तथ्य प्राचीन गणितज्ञों तथा से गुणा किए जाएँ तो आकाशकक्षा होता भूगोलवेत्ताओं की सुदीर्घ शोध के महत्वपूर्ण है । उतनी दूर तक सूर्यकिरणे व्याप्त हैं। परिणाम है। ...... इसी प्रकार विभिन्न ग्रहों की दूरियाँ इनमें से अनेक आज भी विज्ञानसिद्ध भी बतायीं गई हैं। तथा बताया गया है हो चुके हैं । .
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