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प्रदान की, और हम उसके दास हो गए। जम्बूद्वीप में वर्णित भोगभूमियां कौन-सी हैं ? यही कारण है कि आज की नई पीढ़ी विज्ञान- विदेह क्षेत्र कौन सा है जहां सतत, वर्तमान जगत् में प्रचलित मान्यताओं को तुरन्त में भी, तीर्थ कर विचरण करते हैं ? भोगस्वीकार कर लेती है, किन्तु, आगमों भूमियो में मनुष्यों का शरीर ५०० धनुष में निरुपित सिद्धान्तों पर श्रद्धा तभी करती प्रमाण तथा आयु भी लाखों करोड़ों वर्ष है जब वह विज्ञान-समर्थित हो । आजकल बताई गई है, ऐसा स्थान वर्तमान ज्ञात विज्ञान-प्रेमी कुछ तार्किक ब्यक्ति जैनागम- पृथ्वी में कहां हैं ? निरुपित पृथ्वी के स्वरुप पर अनेक आपत्तियां इसी प्रकार, वर्तमान ज्ञात पृथ्वी को प्रकट करते है, जिनका समाधान भी यहां भरत क्षेत्र भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि करना अप्रासंगिक न होगा । वे आपत्तियां तब यह प्रश्न उठेगा कि उसमें पैताढय, पर्वत इस प्रकार है
(विजयाधी) कौन सा है. ? इस पर्वत की __(१) जैन आगमों के अनुसार, मध्यलोक ऊंचाई २५ योजन बताई गई है, तथा उसकी की रत्नप्रभा पृथिवी का विस्तार असंख्य लम्बाई (पूर्व से पश्चिम तक) दस हजार सहस्रयोजन का बताया गया है । जैन सात सौ बीस योजन के करीब है । आखिर आगमों में समस्त मनुष्य-लोक की लम्बाई- यह पर्वत कहां है ? चौडाई ४५ लाख योजन, तथा परिधि १४२३- (२) मनुष्य लोक में १३२-१३२ सूर्य०२४९ योजन कही गई है। जम्बूद्वीप की चन्द्र माने गए है । जम्बूद्वीप में भी दो मी परिधि का प्रमाण तीन लाख सोलह हजार सूर्य व दो चन्द्र बताए गए है। समस्त दो सौ सत्ताईस योजन से कुछ अधिक बताया पृथ्वी पर तो चन्द्र-सूर्यादि की संख्या इससे गया है। योजन का परिमाण भी आधनिक भी अधिक, अनगिनत, बताई गई है । किन्तु माप का ४००० मील होता है। प्रत्यक्ष में तो सारी पृथ्वी पर एक ही सूर्य
किन्तु विज्ञानवेत्ताओं के अनुसार, वर्त- व एक ही चन्द्र द्रष्टिगोचर होता है। मान बिज्ञात पृथ्वी का व्यास ८००० मील (३) आगमों में बताया गया है कि जब है, तथा परिधि २५ सौ मील है । वर्तमान विदेह क्षेत्र में रात (जम्बूद्वीप स्थित मेरु ज्ञात पृथ्वी को जम्बूद्वीप भी नहीं माना जा के पूर्व-पश्चिम में स्थित होने से) होता है सकता, क्योंकि तब यह प्रश्न उठेगा इस कि तो भरतादि क्षेत्र में (मेरु पर्वत के उत्तर१. बृहत्क्षेत्रसमास-५, ति. प. ४/६-७, हरि दक्षिण में होने के कारण) दिन होता है ।
बंश पु० ५/५९०, जीवाभि. सू० ३/२/१७७ ३. भवेद् बिदेहयोराद्य यन्मुहुर्तत्रय निशः स्थानांग-३-१-१३२
स्यात् भारतैरवतयो; तदेवान्त्य क्षणायम् २. द्रष्टव्य-जम्बूद्वीपः एक अध्ययन' (ले.
स्याद् । पू. आर्यिका ज्ञानमती जी), आ० देश- भवेद् विदेहयोः रात्रेः तदेवान्त्य क्षणत्रायम् भूषण भ० अभिनन्दन ग्रन्थ (जैन धर्म (लोक प्रकाश-२०/११६-११७) ॥ भगव आचार खण्ड) पृ० १७-१८,
वती सू. ५-१-४-६,
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