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________________ १९ . विदेह क्षेत्र में कभी धर्मोच्छेद नहीं होता है । ७ भरत क्षेत्र के भी८ वैताद्वय (विजयाद्ध)९ और वहां सदा तीर्थ कर विद्यमान रहते है४। के कारण दो भाग हो जाते हैं-(१) वहां हमेशां ही चतुर्थकाल रहता है५, अर्थात् उत्तराध भरत, (२) दक्षिणाध भरत । इन वहाँ मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु: एक कोटी दो में से प्रत्येक के भी, गंगा व सिन्धु 'पूर्व' तक, तथा शरीर की ऊंचाई ५०० नदी के कारण ३-३ खण्ड हो जाते हैं, इस धनुष प्रमाण होती है। प्रकार भरत क्षेत्र के ६ खण्ड हो जाते हैं १ । दक्षिणार्ध भरत खण्ड के तीन खण्डों में से : भरत व ऐरावत में (५-५ म्लेच्छ-खण्डों मध्य खण्ड का नाम 'आर्य खण्ड' है२, जहां में कुछ अपवादों को छोडकर) उत्सपिणी व तीर्थकरादि जन्म लेते हैं, बाकी ५ खण्ड अवसर्पिणी का षट्, कालचक्र निरन्तर प्रवति त म्लेच्छ खण्ड है३ । दक्षिणार्ध भरत खण्ड होता रहता है । अवसर्पिणी में मनुष्यादि की आयु, शरीर की ऊंचाई, विभूति, सुख की चौड़ाई २३८.३० योजन, ४ तथा पूर्व आदि में हास गतिशील रहता है, किन्तु - उत्सर्पिणी में इनमें क्रमिक-उन्नति प्रवति त ७. ति० प० ४/१०० लोकप्रकाश-१६/३० रहती है। - हरिवंश प० ५/१७-१८, जंबूद्दीव ५० (श्वेता०) १/१०, त्रिलोकसार-७६७, । भरत क्षेत्र का विस्तार ५२६२० योजन ८. वैताढय (विजया) पर्बत की ऊंचाई २५ योजन, तथा इसकी जीवा (उत्तर४. राजवातिक-३/१०, त्रिलोकसार-६८०, प्रत्यंचा) का प्रमाण १०७२० ११/१३ लोकप्रकाश-१७/३६, ३९, ५५, योजन है (द्र० लोकप्रकाश-१६/४८-५२. ५. त० सू० ३/१० तथा ३/३१ (दिग० जबूहीव. प० (दिग०) २/३५, त० सू० - सं०) पर श्रुतसागरीय टीका व राज- ३/१० पर श्रुतसा० टीका, हरिवंश पु० वाति क, त्रिलोकसार-८८२, लोकप्रकाश- ५/२०-२१, बृहत्क्षेत्र स० ४४, १७८, १७/२३८, ४२१. बृहत्क्षेत्र समास-३९४. ५९२. ९. जंबूद्दीव प० (श्वेता०) १/१५, लोक६. ति० : ५०/३१३-१४, ४/१५५७, जंबूहीव प्रकाश-१६/३५, ४७, बृहत्क्षेत्र समास २५ • प० (श्वेता०) २/१८, त्रिलोकसार-७७९, १. ति० प० ४/२६६-६७, लोकप्रकाशस्थानांग-६/२३.२७, त० सू० ३/२७, (दिग० संस्क०) तथा इस पर टीकाए १६/३६१, त० सू० ३/१० पर श्रुतसा० टीका, २. ति० प० ४/२६५, हरिवंश पु० ७/५७,६३, बृहत्क्षेत्र समास ३. लोक प्रकाश-१६/४५, १९/२००-२०१, १९५, ४. लोक प्रकाश-१६/३७, जंबूढीव प० (श्वेता०) १/११, बृहत्क्षेत्रसमास-२६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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