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________________ ५८ लाख सोलह हजार, तथा सप्तम एक लाख (१२) वर्च गत, (१३) बहुल, (१४) शैल, आठ हजार योजन मोटी है । ४ (१५) पाषाण७ । इन पटलों में बिविध रत्नों को खाने हैं । ८ (क) पृथ्वी में रत्नो की खाने (ख) पृथ्वी का आकार-गोल व चौरस ' प्रथम पृथ्वी के खर भाग (१६ हजार (सपाट) दर्पण की तरह योजन) के १६ पटलों (विभागों) में ऊपरी इस धरती का आकार जैनागमों में पटल का नाम 'चित्रा' है,५ जिसकी 'झल्लरी' (झालर या चूडी) के समान वृत्त मोटाई एक हजार योजन है६ । चित्रा माना गया है९ । कुछ स्थलो में इसे पटल के नीचे पन्द्रह अन्य पटलों के नाम - __७. ति० प० २/१५-१८, हरिवंश पुराण इस प्रकार है-(१) गैडूर्य, (२) लोहितांक, ... (४/५२-५४) में नाम इस प्रकार है(३) असारगल्ल, (४) गोमेदक, (५) प्रवाल, चित्रा, वना, घडूर्य, लोहितांक, मसा. (६) ज्योतिरस, (७) अंजन, (८) अंजनमूल, रकल्प, गोमेद, प्रवाल, ज्योति, रस, (९) अंक, (१०) स्फटिक, (११) चन्दन, अंजन, अंजनमूल, अंग, स्फटिक, ४. त्रिषष्टि० २/३/४८७, त० सू०, भाष्य- चन्द्राभ, वर्च स्क, बहुशिलामय । त्रिलो ३/१, जीवाजीवा० सू० ३/२/६८,३/२। कसार (१४७-१४८) तथा जंबूद्दीव ८१, प्रज्ञापना सू० २।९७-१०३, दिग- पण्णत्ति (दिग०) (११/११७-१२०) में म्बर-परम्परा में पृथ्वीयों की मोटाई सामान्य-अन्तर के साथ नामों का द्वितीय पृथ्वी से लेकर सातवीं पृथ्वी निदेश है। तक इस प्रकार है-शर्क राप्रभा-३२०००, लोकप्रकाश (१२/१७२-१७५) में नाम बालुकाप्रभा-२८०००, पंकप्रभा-२४०००, इस प्रकार है-रत्न, वन, वैडूर्य, धूमप्रभा-२००००, तमःप्रभा-१६०००, लोहित, अंक, रिष्ट । जीवाजीवाभिगम महातम प्रभा-८००० योजन (द्र० सूत्र (३/१/६९) में भी कुछ इसी तिलोय प० २।२२, १२२८२ पृ० ४६-४९, तरह के नाम दिए गए हैं। त्रिलोकसार-१४९)। तिलोयपण्णत्ति ८. ति० प० २/११-१४, लोकप्रकाश १२/ में श्वेताम्बर-सम्मत परिमाण को ९. मध्ये स्याज्झल्लरीनिभः (ज्ञानार्णव ३३/ 'पाठान्तर' (मतभेद) के रुप में निर्दिष्ट ८)। मध्यतो झल्लरीनिभः (त्रिषष्टिः किया है (ति० प० २।२३। २/३/४७९) । एतावान्मध्यलोकः स्यादा५. तिलोयपण्णत्ति २/१०, त्रिलोकसार-१४७ कृत्या झल्लरीनिभः (लोकप्रकाश १२/ राजवार्तिक ३/१/८, जंबूद्दीव पण्णत्ती ४५)। खरकांडे किंसंठिए पण्णत्ते । ' (दिग०) ११/११७, गोयमा । झल्लरीसंठिए पण्णत्ते (जीवा६. ति० प० २/१५, हरिवंश पु० ४/१५, जीवा० सू० ३/१/७४) । भगवती सू० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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