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वस्तुतः सत्य के. प्रति अज्ञान को व्यक्त चित्रों का तकनीकी विश्लेषण किया है उन करती है।
का यह विश्लेषण निश्चय ही विचारणीय है। ___इस दृष्टि से दिनांक २१ की शाम को उन के इस विश्लेषण से मुनिराजश्री की एपोलो-८ गया, उस समय चन्द्र अस्त होने धारणा को बल मिलता है और यही विचार के लिये मध्याकाश से ढल गया था अर्थात् सही लगता है कि एपोलो "यान चन्द्र पर यहां से चन्द्र लगभग १६,३०,२३,२१६ मील नही पहुचा" दूर था और एपोलो-८ केवल २,३७,००० इसी प्रकार श्री आर. बी शाह, जैन मील की दूरी तक ही गया था, तो वह चन्द्र भूगोल-विशेषज्ञ, अहमदाबाद ने एक लेख पर कैसे पहुंच सकता है ?
"चन्द्र-यात्रा के अन्तस्तल' में लिखा है । ... इस के आधार पर भी यह कहा जा श्री शाह ने भी चन्द्र-यात्रा के सम्बन्ध में सकता है कि एपोलो-८ से इस विस्तृत अनेक विचारणीय-तथ्यों को प्रस्तुत किया अंतर के बीच में स्थित किसी पर्वतीय है। जिससे विज्ञ-पुरूषों के सामने प्रश्न विस्तार वाली भूमि के ही उस के यात्रियोंने चिहन उपस्थित हो जाते है । श्री शाह दृश्य देखे होंगे और टेलीविजन सेट पर ने लिखा है "इस प्रकार देखती हुई जनता त्वरा से वे ही दृश्य प्रसारित किये होगे। के मानस पर प्रचार के बल पर ठुसे गये . चन्द्रमा के उपयुक्त अगणितीय अन्तर एपोलो ११ का चन्द्र पर अवतरण के पीछे को पार करने के लिये अभी और भी सुदृढ सचमुच राजकीय कूटनीतिज्ञों के दांव-पेच का तैयारी की आवश्यकता है। अतः यह होना प्रतीत होता है।"
कहना अनुपयुक्त नही है कि "एपोलो यान" . वास्तव में इस प्रकरण में जो तथ्य प्रकट .: की यात्रा चन्द्रयात्रा न हो कर आकाश यात्रा किये गये है वे विचारणीय है, पू. मुनिश्री
अभयसागर जी महाराज का चिंतन गहनपं. प्रभुदासभाई बेचरदास पारेख गभीर है । उन के चिंतन के पीछे साधना राजकोट, ने अपने लेख "एपोलो-१० से का वजन है । विश्वास है कि इस सम्बन्ध लिये गये चित्र क्या पृथ्वी के है ?" में में वास्तविकता एक न एक दिन अवश्यही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के एपोलो यान से प्रकट होगी । खीचे गये प्रकाशित पृथ्वी चन्द्र आदि के
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