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से जलते हुए गेस द्वारा विस्फोट हुआ होगा शुक्र और पृथ्वी है, पृथ्वी का उपग्रह चन्द्र किन्तु जले हुए ईधन का अवशेष अथवा है, इस लिये एक ही कक्षा में पृथ्वी के धुएं का बाहर निकलना किस प्रकार हुआ? आगे चन्द्र है जो मात्र पाँच अशका कोण ___ बातावरण के बिना जला हुआ ईधण।
ही बनाता है, किन्तु पृथ्वी केन्द्रवादियों के मान्यअथवा धुआं वातावरण के माध्यम के बिना ।
- तानुसार, "पृथ्वी से ऊपर चन्द्र" है यह निकल ही नहीं सकता है। इस से भी यह
बात आज का विज्ञान नहीं मानता है। कहा जा सकता हैं कि १९० मील से ऊपर
इस लिये एपोलो यान को वे ऊपर क्यों भेजें वे नहीं गये हैं और ढाई लाख मील तिरछे
विज्ञान की दृष्टि से तिरछा भेजना ही गये हैं।
संगत है । (३) आकाशयात्रियोंने एपोलो यान की खिड़
जब कि वास्तव में चन्द्र तो ऊपर कियों पर बर्फ और कुहरा जम जाने और
ही है, तिरछा नहीं । अतः अपोलो की उसके कारण स्पष्ट न देख सकने की शिका
तिर्यग् गति प्रमाणित कर देती है कि चन्द्र यत नासा के सैज्ञानिकों के समक्ष की है।
" पर न पहुँच कर भरत क्षेत्र के मध्य खण्ड
__ के पाँच करोड़ मील व्यासबाले क्षेत्र में २॥ इस पर विचारणीय तथ्य यह है कि लाख मील दूर किसी पर्वत पर एपोलो यान वास्तव में यदि वे ढाई लाख मील ऊपर गये उतरा हो । वह अधिक संगत भी लगता है। होते तो शून्य बातावरण में बर्फ या कुहरा कहां से आ सकता है ?. .
(५) यदि सैज्ञानिकों के कथनानुसार कदाचित् हो तब भी उसे सूर्य के प्रचण्ड एपोलो वस्तुतः चन्द्रमा पर गया हो, तो हम ताप से सूख जाना चाहिये।
यहां से पूर्णिमा के चन्द्र को ९ इंच की परन्तु बर्फ और कुहरे के आवरण रकाबी के जितना देखते हैं, तदनुसार चन्द्र पर एपोलो यान से नहीं दीख पाने की बात
__ वे पहुंचे हो, तो वहां पहुंचने के बाद पृथ्वी
पर एपोलो के व्योमयात्रियोंने क्यों और कैसे की? ३६ इच-३ फुट के व्यास वाली थाली
जैसी दिखाई देनी चाहिये । क्योंकि पृथ्वीका ___इससे यह प्रमाणित होता कि एपोलो
व्यास लगभग ७९२६ मील का और चन्द्र का केवल १९० मील ही ऊपर गया है ओर
व्यास २१६० मील का है, अर्थात् इन दोनों ढाइ लाख मील तिर्खा गया है ।
के बीच लगभग चौ गुना अन्तर है । केप . (४) एपोलो तिरछा गया है, यह बात के नेडी से विशेष रुप से प्रकाशित आकाशीय केप केनेडी से प्रकाशित एपोलो की दिशा चित्रावली (Space pictures series) बताने वाले इस चित्र से भी स्पष्ट होती हैं। और समाचार पत्र में प्रकाशितं अनेक चित्रों ___ दूसरी वात यह है कि विज्ञान की में से एक भी ऐसा नहीं है कि जिस में मान्यतानुसार केन्द्र में सूर्य, बाद में बुध, पृथ्वी का व्यास बड़ा बताया गया हो ।
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