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स्पेस रिसर्च सेन्टर केप केनेडी में बैठे हुए होगा, ऐसा इस विचार-मथन से स्पष्ट ज्ञात नियंत्रको के बटन दबाने के परिणाम स्वरुप होता है । यदि एपोलो वस्तुतः पृथ्वी से उपर एपोलो का मुंह चन्द्रमाकी ओर तिरछा हो गया हो तो लगभग ढाई लाख मील दूर स्थित गया और उस दिशा (पूर्व) में २३०००० एपोलो के आकाश-यात्रियों के साथ नासा के मील दूर गया।
वैज्ञानिकों ने सम्पर्क किस प्रकार रखा ? इसमें समझने की बात यह है कि पृथ्वी एपोलो के आकाश-यात्री टेलीविझन सेट द्वारा से ऊंचाई तो केवल १९० मील की ही है। चित्रों को किस प्रकार प्रसारित करसके ?
नासा के गैज्ञानिकोंने बातचीत की है, पृथ्वी से दूरी २३०००० मील की, किन्तु
टेलीविझन सेट पर प्रोग्राम आये हैं, यह ऊंचाई १९० मील से अधिक नहीं है। इसी
बात ही प्रमाणित रहती है हि एपोलो पृथ्वी लिये एपोलो-११ के चन्द्र पर उतरते समय
से ऊपर १९० मील ही अर्थात् , आयनोस्फीनीचे की ओर उतरना पड़ा।
यर की मर्यादा तक ही गया है और बाद में - वस्तुतः चन्द्र आकाशीय पिण्ड है और
पूर्व दिशा में तिरछा ढाई लाख मील गया है ? हमारे जगत से ३१ लाख ६८ हजार मील
यदि सीधा ढाई लाख भील ऊंचा गया ऊंचा है । वहाँ पहुंचने के लिये एपोलो को
होता तो २०० मील के आयनोस्फीयर के सतत ऊर्ध्व गमन करना आवश्यक था, इससे
बाद के एक्झोस्फीयर में गये हुए एपोलो के यह स्पष्ट होता है कि एपोलो पृथ्वी से
साथ कॉस्मिक रेझ के अवरोधों के कारण तिरछा गया है, उपर नहीं ।
वैज्ञानिक आकाशयात्रियों से सम्पर्क नहीं जिस विश्व में हम रहते है वह पूरा रख सकते । बिश्व का अत्यन्त छोटे से छोटा असंख्यातवां वैज्ञानिकों के कथनानुसार पृथ्वी से भाग है। समस्त विश्व के मध्यमवती जम्बू ढाई लाख मील ऊपर व्योम यात्री गये थे, टीप के दक्षिण हिस्से के भरतक्षेत्र के दाहिने वहां वातावरण नही है तो रोकेट का धडाका भाग के मध्य खण्ड के अति अल्प टुकडे में वहां किस प्रकार हुआ ? चन्द्र के गुरुत्वाविश्व वर्तमान पूरा है । भरतक्षेत्र का माप पूर्व कर्षण में प्रविष्ट हो भ्रमण कक्षा में स्थिर पशिम १०८००००० मील ओर उत्तर-दक्षिण होने के लिये तथा भ्रमण-कक्षा से निकाल
1038८ मील का है।. मध्यखण्ड के मध्य कर चन्द्र के गुरुत्वाकर्षण से छटने के लिये औट से दक्षिण-पश्चिम के मध्य वाले (नेऋत्य एपोलो के व्योमयात्रियों ने रोकेट का विस्फोट कोण) ३७०००० मील दूर ८००० मील के कियाही है । तब वेक्यूम में ईधन जले ही व्यास वाले प्रदेश पर हम रहते हैं। कैसे? यहां से एपोलो पूर्व की ओर गया है कदाचित् हम यह मान लें कि जैसे
में अनेक पर्वत है, उनमें से किसी वे श्वास के लिये आक्सीजन की टंकी ले एक पर्वत पर एपोलो का अवतरण हुआ गये थे, उसी प्रकार ओक्सीजन की टंकी में
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