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के बाद भगवान ने उसे चैतन्य किया तथा उसके पैरो से लेकर कटिपर्यन्त सातों पाताल उस से संहस्रों चरण, भुजा, नेत्र, मस्तिक तथा भूलोक की कल्पना की गयी है । वाला विराट पुरुष निकाला (४)
नाभि में भुवलोक की, हृदय में स्वर्लोक उसी विराट-पुरुष के विभिन्न अंगो में की और परमात्मा के वक्षस्थल में महलोक समस्त लोको और वस्तुओं की कल्पना की की कल्पना की गयी है। गले में जनलोक, जाती है। उससे कमर के नीचे के अंगो में स्तनों में तपोलोक और मस्तक में ब्रह्म का सात पाताल की ओर पेट से उपर के अंगो नित्य-निवास-स्थान सत्यलोक है । (६) में सात स्वर्गों की कल्पना की जाती है (५) अब जैन परम्परा को लें।
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अन दर्शन के अनुसार लोक स्वरुप
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