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कभी इसका नाश होगा । (३) वैदिक परम्परा के अनुसार ईश्वर ही सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता है । स्वयंभुव ईश्वर अपने तीन रूपों में इसकी सृष्टि पालन और प्रलय करता है
"ब्रह्मत्वे सृजते लोकान् विष्णुत्वे पालयत्यपि । रुद्रत्त्वे संहरत्वेव तित्रोवस्था स्वयं भुवः ॥ "
श्रीमद्भागवत् के अनुसार एकसे अनेक होने की इच्छा से विष्णु ने काल कर्म और स्वभाव को स्वीकार किया । इनके कारण हुये विकार
सह लोक
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कि
अतल
वितल
तेजातल.
२९
से शब्द स्पर्श और रूप के योग से जल, जल से गंध, और गन्ध से पृथ्वी उत्पन्न हुई । इसके बाद उसी सतोगुणी अहम् से मन बुद्धि प्राण और दस इन्द्रियां (पाँच ज्ञानेन्द्रियां पाँच कर्म इन्द्रियां) तथा इनके देवता उत्पन्न हुए ।
सुतल
मिहातल रिसातल.
क
विराट
ये सब मिल कर अपनी शक्ति से कुछ न कर सके तब विष्णु की शरण में गये । विष्णु ने सबको मिलाकर ब्रह्माण्ड नामक शरीर की रचना की । हजारों वर्षों तक जल में पड़े रहने
जमलोक
स्क्लकि (9) होलोक
अनलुकि
इसके नीचे सात पाताल
तथा
लोक
पाताल
पुरु
श्रीमद्भागवत श५श शुद्ध रह
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