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जैन परम्परा के अनुसार लोक का आकार पृथ्वी से दसगुना जल है । जल से दसदोनों पैर फैलाकर कमर पर हाथ रखकर खड़े गुनी अग्नि, अग्नि से दसगुना वायु, वायु हुये पुरुष के समान है । यह घनोदधि, घनवात से दसगुना आकाश, आकाश से दसगुना
और तनुवात इन तीन वातवलयों से घिरा अहंकार, अहंकार से दसगुना महतत्त्व और है, इसके कारण यह तीन रस्सियों से बने महतत्त्व से दसगुनी मूल प्रकृति है । (९) हुए छी के के तुल्य प्रतीत होता है । (७) विष्णु पुराण के अनुसार इस पृथ्वी पर
लोक के तीन विभाग है अघोलोक, मध्य- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, क्रौंच, शाक और पुष्कर लोक और उप्रलोक । (८)
ये सात द्वीप तथा लवणोद, इक्षुरस, सुरोद, ____ अधोलोक में निगोद नरक आदि है । मध्य- सर्पिस्सलिल, दधितोय, क्षीरोद और स्वादुसलिल लोक में यह पृथ्वी और उर्ध्वलोक में स्वर्ग ये सात समुद्र के जो चूड़ी है आकार रुप सिद्धशिला आदि है।
से एक दूसरे को वैष्टित करके स्थित ___अधोलोक (जो कमर से नीचे का भाग है ये द्वीप पूर्व पूर्व द्वीप की अपेक्षा दुगने है में सात नरक है । उर्ध्वलोक में सोलह स्वर्ग विस्तार वाले है । (१०) तथा अनुत्तर, अनुदिश आदि हैं। सबसे उपर जैन परम्परानुसार भी मध्यलोक में वलयासिद्धशिला है। (दे. चित्र २)
कार रुप से अवस्थित असंख्यात द्वीप और वैदिक-भूगोल भी लगभग इसे स्वीकार समुद्र एक के पीछे एक को वैष्टित करके स्थित करता है विराट-पुरुष के पैरों से कटिपर्यन्त है । प्रत्येक द्वीप और समुद्र पूर्व पूर्व की सात पाताल ही सात नरक है जो सात स्वर्ग अपेक्षा दूने विस्तार से युक्त है । (११) और महलोक, जनलोक और तपोलोक की वास्तव में द्वीप और समुद्रों से पृथ्वी कल्पना की गयी है वह जैनाभिमत, स्वर्ग के घिरे होने का उल्लेख लगभग सभी ग्रन्थो
और अनुत्तर अनुदिश आदि है। सबसे उपर में आया है। सिद्ध शिला (मोक्ष)
कथासरित् सागर के अनुसार पृथ्वी द्वीपों जैन परम्परानुसार है वैदिक परम्परानुसार एवं समुद्रों से घिरी है । (१२) भी विराट पुरुष के मस्तक पर ब्रह्म का नित्य काव्यमीमांसा में भी इसी आधार पर निवास स्थान सत्यलोक (मोक्ष) है।
सात समुद्रों और सात द्वीपों की गणना वैदिक परम्परानुसार सृष्टि अंडाकार है। की गयी है । (१३)
आधुनिक विज्ञान पृथ्वी को गोल और कथासरिनसागर में ही पृथ्वी को कहीं नारंगी की तरह चपटी मानता है। सात और कहीं चार समुद्रों से घिरा बताया
जैन परम्परानुसार लोक तीन वातवलयों गया है (१४) से घिरा है । वेदांत के अनुसार ब्रह्माण्ड सात राजशेखर ने पृथ्वी ४ समुद्रों से घिरी आवरणों से घिरा है ।
है या ७ समुद्रों से ? इस प्रश्न का समाधान
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