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नरक की यातनाओं को भोगने के लिए यमलोक इसी प्रकार द्रौपदी और युधिष्ठिर के जाते हैं और तदुपरान्त इस पृथ्वी पर लौट आते वार्तालाप से पुनर्जन्म विषयक धारणा को है। (७) जो श्रद्धा एवौं तप के मार्ग का अनु- पुष्टि मिलती है- युधिष्ठिर ने कौरवों के करण करते हैं, वे देवयान मार्ग से जाते हैं साथ द्यूतक्रीडा में सर्वस्व खो दिया था और और जो यज्ञ, दान एवं जनकल्याण के कर्मो वन में कष्टपूर्ण जीवन यापन कर रहे थे । का सम्पादन करते है वे पितृयाण मार्ग से द्रौपदी को इस बात का आश्चर्य था कि जाते है, (८) और जो इन दोनों में से किसी युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी, उदार और कर्तव्य भी मार्ग का अनुसरण नहीं करते वे तीसरे निष्ठ व्यक्ति किस प्रकार द्यूत जैसे निकृष्ट स्थल पर जाते हैं, और कीडे, मकोडे आदि कार्य में प्रवृत्त हुए। भगवान् समस्त जीवों की योनि में जन्म ग्रहण करते हैं । कठोपनिषद के साथ माता-पिता का समान व्यवहार नहीं में भी कहा गया है- जो व्यक्ति अविज्ञान- करता । उसे कष्ट हुआ कि सदाचारी व्यक्ति वान है, मन को संयमित न रखने वाला है, दुःख भोग रहे हैं, और दुराचारी लोग आनन्दजो सदा अपवित्र रहने वाला है उसे वह पूर्वक जीवन यापन कर रहे है। इस पर सर्वोच्च पद प्राप्त नहीं होता और वह युधिष्ठिर ने द्रौपदी से कहा कि मैंने दान आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है । (९) किये, यज्ञ किये, कर्म किये, किन्तु इस लिए
नहीं कि उसका पुरस्कार मुझे मिले अपितु भगवद्गीता में भी भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा उन्हे सम्पादित करना अपना कर्तव्य माना यह कहा गया है कि योग के मार्ग में जो और अन्त में यही निष्कर्ष निकाला कि व्यक्ति श्रद्धापूर्वक व्यवसाय करता है। वह व्यक्ति जो कुछ भी प्राप्त करता है वह उसके व्यर्थ नहीं जाता, भले ही! उसका फल उसे पूर्वजन्मों का फल है । तत्काल न प्राप्त हो । ऐसा व्यक्ति जो पूर्णता कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त से हमारा प्राप्ति में असफल हो जाता है, किसी बुरे हिन्दु-समाज पूर्णतया प्रभावित है । रघुवंश अन्त को नहीं प्राप्त होता, वह सदाचारी में इस प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है लोगों के लोकों को जाता है और वहां पर जब राम वामन के आश्रम में पहुंचे तो वे मन बहुत वर्षों तक निवास करता है । समृद्ध से अस्थिर हो गये, वामन के रूप में अपने एवं पवित्र लोगों के घरों में जन्म लेता है कर्मों का स्मरण नहीं कर सके । इसी प्रकार
और सभी पापों से मुक्त हो कर परम पद शाकुन्तल के सप्तम अंक में जब शकुन्तला को प्राप्त करता है। (१०)
और दुष्यन्त का पुनर्मिलन होता है तो ____एक अन्य स्थल पर भगवान् श्रीकृष्ण ने शकुन्तला अपने पति दुष्यन्त के पूर्वत्याग की कहा है - मेरे बहुत से जीवन है जो बीत और सडूकेत कर कहती है कि - अवश्य ही
चुके हैं और तुम्हारे भी। मैं उन सभी को उस समय मेरे दुष्कर्मो ने सुकृत्यों को प्रतिबंधित जानता हूँ, किन्तु तुम नहीं जानते । (११) किया होगा और वे स्वयं प्रतिफलित हुए ।
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