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________________ हम अपने वर्तमान - जीवन की कतिपय समस्याओं में भी पुनर्जन्म - सम्बन्धी धारणाओं का अवलोकन कर सकते हैं । उदाहरणार्थ जब दो अनजान व्यक्ति एक दूसरे से मिलते हैं तो उनमें मित्रता एवं वैर की भावना क्यों उमड़ पड़ती है ? इससे यह कल्पना मन में आती है कि सम्भवतः पूर्वजन्म में वे एक दूसरे के मित्र या दुश्मन रहे हैं । इसी प्रकार देखने में आता है कि कुछ लोग बिना किसी योग्यता के आनन्दोपभोग करते हैं और कुछ लोग योग्यता रहते हुए भी कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं । इससे हम यह मानने को विवश हो जाते हैं कि पूर्वजन्म के कर्मों का ही यह परिणाम है । अन्य उदाहरण जैसे - कभी-कभी एक दरिद्र व्यक्ति राजा हो जाता है और अपनी प्रतिभा और योग्यता के बल पर लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है । सम्भवतः इन सब के मूल में पूर्वजन्म के कर्म और संस्कार हैं । रामायण की भी यह मान्यता है कि वर्तमान- जीवन की चिन्ता या दुःख अतीत जीवन या पूर्वजन्म में किये गये ऐसे ही कर्मों का परिणाम है । कैकेयी की वरयाचना पर दशरथ द्वारा राम को वनवास दिये जाने पर राम की माता कौशल्या विलाप करती हुई कहती हैं- मैं विश्वास करती हूँ कि मैंने पूर्वजन्म में बहुत से लोगों को उनके पुत्रों से दूर कर दिया होगा या जीवित प्राणियों को हानि पहुँचाई होगी, इसी से यह दुःख मुझ पर आ पड़ा है । पुराणों में भी सद् एवं असद् कर्मों की महत्ता पर बल दिया गया है । नारदीय १४ Jain Education International पुराण (उत्तरभाग) के अनुसार अच्छे या बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ता है, जब तक कर्म का नाश नहीं हो जाता । सैकड़ों जीवन के उपरांत भी कर्म का नाश नहीं होता । (१२) मनुष्य अपने कर्मों द्वारा देवता बन सकता है यो मानव बन सकता है, पशु या पक्षी, क्षुद्रजीव या स्थावर बन सकता है । अपनी शक्ति या सन्तान की उत्पत्ति से कोई व्यक्ति पूर्वजन्म में किये गये कर्मों के प्रभावों को दूर नहीं कर सकता । (१३). उपनिषद् ग्रन्थों में पुनर्जन्म सम्बन्धी दो महत्त्पूर्ण सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है – (१) जीवात्मा एवं परमब्रह्म की अभिन्नता (२) व्यक्ति के कर्तव्यों एवं आचरण पर आत्मा का आवागमन (पुनर्जन्म ) निर्भर करता है । उपनिषद् का यह सिद्धान्त है कि व्यक्ति को अच्छे या बुरे कर्मों का फल अवश्य भोगना पडता है । गौतमधर्मसूत्र में कहा गया है - कि पापों के शमन हेतु प्रायश्चित्तों के विषय में दो मत है - जिनमें एक यह है कि पापों के लिए प्रायश्चित्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जब तक उनके फलों को भोग नहीं लिया जाता, उसका नाश नहीं होता और दूसरा मत है कि जो अश्वमेध यज्ञ करता है । वह सभी पापों यहां तक कि ब्रह्महत्या को भी लांघ जाता है । (१४) महापातकी लोग बहुत वर्षो तक घोर नरक रह कर अनेक जन्म प्राप्त करते हैं । ब्रह्म हत्यारा, कुत्ता, सूअर, गधा, ऊँट, कौआ, बकरी, भेउ, हरिण, पक्षी एवं चाण्डाल के जन्मों को प्राप्त करता है । सुरापान करने For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005568
Book TitleJambudwip Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages190
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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