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________________ आधारस्तम्भ है और अन्ततोगत्वा वही जन्म विशिष्ट वृत्तियों एवं शक्तियों पर निर्भर एवं मरणों के चक्र के मूल में भी है। करती है । (५) शरीर के मरणोपरान्त क्या होता है, कर्म एव पुनर्जन्म के विषय में अति यह तीन सम्भावनाओं को जन्म देता है- प्राचीन काल से ही लोगों का मन प्रभावित था । आपस्तम्ब-धर्मसूत्र में कहा गया है कि १. सम्पूर्ण विलोप विभिन्न वर्गों के लोग अपने-अपने व्यवस्थित २. स्वर्ग या नरक में फल भोगना कर्मो के सम्पादन से अपरिमित सुख का ३. पुनर्जन्म भोग करते हैं । कर्मफल शेष रह जाने के कारण ही वे इस लोक में पुनः जन्म ग्रहण ____पुण्य-कर्मो का सम्पादन करने वाला करते है और यथोचित कुल, रुप, वर्ण, बल, स्वर्ग का भोग करता है और दुष्कर्म करने बुद्धि, प्रज्ञा, सम्पत्ति के साथ जन्म लेते है, वाला व्यक्ति नरक का भोग करता है धर्मानुष्ठान का लाभ उठाते है। यही नियम इस प्रकार कर्म ही पुनर्जन्म का कारण है। दुष्कर्मियों के लिए भी प्रयुक्त होता है । ___जो व्यक्ति आत्मा की अमरता में विश्वास कर्म-सिद्धान्त तीन बातों पर विशेष रूप से नहीं करते हैं वे प्रथम-मत में आस्था रखते बल देता है- (१) यह वर्तमान अस्तित्त्व है। जो लोग केवल ईश्वर, स्वर्ग एवं नरक को अतीत अस्तित्त्व में किये गये कर्मों का में विश्वास करते है उनमें बहुत से लोग, फल मानता है । (२) दुष्कर्म का नाश सत्कर्म आत्मा के पूर्वअस्तित्व में विश्वास न करके नहीं हो सकता, दुष्कर्मो का फल तो दूसरे अस्तित्त्व में विश्वास करते है । भोगना ही है। (३) दुष्कर्म के लिए जो दण्ड वे० सू० (वेदान्तसूत्र) में पुनर्जन्म के सिद्धान्त होता है, वह व्यक्तिगत अथवा स्वयं होने वाला के विषय में महत्त्वपूर्ण बाते आयी है। विरोधी __होता है। कर्म सिद्धान्त ही हमें पुनर्जन्म के कहताहै- 'यह कहना कि ईश्वर संसार का सिद्धान्त की ओर ले जाता है । एक व्यक्ति के कर्मो का फल वर्तमान जीवन में नही भी कारण है, युक्तिसङ्गत नहीं प्रतीत होता । इस पर घटित हो सकता- दुष्कर्म अपना फल गौ उत्तर पक्ष कहता है- यदि ईश्वर ने संसार में वैषम्य की रचना केवल अपने मन से की के समान तुरन्त ही नहीं उपस्थित कर देता होती, तथा किसी अन्य बात पर विचार न अपितु शनैः शनैः वह अपने कर्ता के जड़ को समाप्त कर डालता है । (६) किया होता तो निःसन्देह उस पर असमानव्यवहार का अभियोग लगाया जाता । ईश्वर वेदान्त सूत्रमें कहा गया है कि सभी पशुओं, मनुष्यों एवं देवों की रचना का . मनुष्य चन्द्रलोक में नहीं जाते, केवल वे लोग एकमात्र कारण है, जो विषमता दृष्टिगोचर ही जाते हैं जो लोग यज्ञ या जनकल्याण के होती है, वह विभिन्न-जीवों की अपनी-अपनी कार्यो को सम्पादित नहीं करते, इसके सिवायके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005568
Book TitleJambudwip Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages190
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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