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________________ को उन लोगों के लोक में ले जाये, जिन्होंने मनुष्य अपने कर्मों एवं आचरण से अच्छे कर्म किये हैं । इस प्रकार अमरत्व के अपने निर्मल-भविष्य का निर्माण करता है, जो लिए सभी देवों की स्तुति की गयी है। यथा- जैसा आचरण करता है, वह वैसा ही होगा, अग्नि की, मरुत् की, मित्र और वरुण की, अच्छे-कर्मों वाला अच्छा जन्म पायेगा, विश्वदेव की तथा सोम की, किन्तु दुष्कृत्य दुष्कर्मों-वाला बुरा जन्म पायेगा । पुण्य-कर्मों करने वालों के लिए ऋग्वेद में कुछ नहीं कहा से पुण्य होता है, दुष्कर्मों से बुरा । (३) गया है । (१) सत्कर्मों के फल की अवधारणा जिस प्रकार एक झिनगा घास के एक अङ्कर के शिखाग्र पर पहुँचने के उपरांत ब्राह्मण-ग्रन्थों में सत्कर्मों के फलों एवं दूसरे अकुर के पास पहुँचने की गति में रत दुष्कर्मों के प्रतिकार के विषय में पर्याप्त वर्णन रहना है, उसकी ओर अपने को खींच लेता है और हुआ है । शतपथ ब्राह्मण में प्रतिकार की भावना उस पर अपने को अवस्थित कर लेता है का व्यक्तीकरण हुआ है । (२) उसी प्रकार यह आत्मा मृत्यु पर अपने शरीर शतपथ-ब्राह्मण के काल तक यह को त्याग कर, अविद्या को हटाता हुआ, दूसरे धारणा बँध चकी थी जो व्यक्ति एक जीवन शरीर की ओर पहुँचता हुआ उसकी ओर में दुष्कृत्य करता है, वह दसरे जीवन अपने को खींच लेता है और उसी में अपने में उसी व्यक्ति द्वारा, जिसका अनि को अवस्थित कर लेता है । (४) वह किये रहता है, दुष्कृत्य का प्रतिकार प्राप्त करता है । शतपथ ब्राह्मण में आया है कि- इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस जीवन जो व्यक्ति इस आत्मा को जानते हैं, या जो में किये गये कर्म एवं आचरण मनुष्य के पवित्र कर्म करते हैं, वे पुनः मरने के उपरांत भावी-जीवन का निर्माण करने वाले होते हैं इस लोक में आते हैं, और आने के उपरान्त और वर्तमान-जीवन अतीत जीवन में अमरता को प्राप्त करते हैं, किन्तु वे लोग जो किये गये कर्मों या व्यवहार का फल है, इसे नहीं जानते या इस पवित्र कर्म का किन्तु कर्म एवं आचरण मानव की इच्छा सम्पादन नहीं करते, मरणोपरान्त पुनर्जीवन शक्ति पर निर्भर करते हैं और यह इच्छा प्राप्त करते हैं और वे मृत्यु का ग्रास बार- कामनाओं के कारण ही जागृत होती है । बार बनते हैं । तैत्तिरीय-ब्राह्मण में आया है मनुष्य की अनेक कामनायें हो सकती है, वह कि मृत्यु ने नचिकेता को तीन वर दिये जिनमें उनमें से कुछ को दबा सकता है, किन्तु कुछ तीसरा कठोपनिषद् से भिन्न है । वह तीसरा कामनाओं की निष्पत्ति अथवा- सिद्धि के लिए वरदान यह है कि “मैं 'पुनर्मत्यु' को किस वह सङ्कल्प ले सकता है । अतः कामनायें प्रकार दूर करूँ, इसकी मुझसे धोषणा करो।" संकल्प या इच्छा, कर्मो एवं आचरण का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005568
Book TitleJambudwip Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages190
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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